गुरुग्राम ,गली न-5 का चरवाहा विद्यालय ( विद्यादान की अनूठी परंपरा की साक्षी )
शहरों की भागम भागम जिंदगी के बीच ,दिन रात निगेटिव ख़बरों के बौछार के बीच कभी दिल को सकून लगने वाली चीजें कम ही दिखाई देती है। लेकिन गुरुग्राम के यूनिटेक हाउस के नजदीक सिलोखरा गांव के गली न. 5 की हलचल एक नए भारत की कहानी कहती है। शहर के ऑटो चालक ,माली ,गार्ड ,रेडी -पटरी वाले परिवरो के सपनो की बुनियाद यह विश्वास है कि सिर्फ शिक्षा से जीवनस्तर बेहतर हो सकते हैं सरकारी अनुदानों और कर्जमाफी से नहीं । सिर्फ शिक्षा -ज्ञान ही मानव मात्र के कल्याण का साधन हो सकता है। सिलोखरा गांव की 14 साल की उमकी प्राइमरी एजुकेशन के बाद घर बैठ गयी थी ,छोटे मोटे काम करने को अभिशप्त हो गयी थी। मजदूर पिता को किसी ने लोटस पेटल फाउंडेशन का नाम बताया। अगले दिन उमकी अपने स्कूल में कमल की तरह खिल रही थी।" प्रतिस्ठान लर्निंग" में उमकी ने शिक्षा ली और 12 वी करने के बाद इसी लोटस के जरिये आई टी आई की ट्रेनिंग ली और आज अपने माँ बाप के सपनो को पूरा कर रही है।
स्कूल ड्रॉपआउट ऐसे दर्जनों बच्चो ने इस स्कूल से शिक्षित होकर गुरुग्राम के कई कॉर्पोरेटकंपनी में अपनी काबिलीयत से नौकरी पाई है। तक़रीबन 600 बच्चो को फ्री स्कूल ,फ्री भोजन ,ड्रेस ,स्किल ट्रेनिंग का जिम्मा उठाने वाले कुशल राज चक्रवर्ती की टीम ने उन हजारों लाखो ना उम्मीदी में एक नयी उम्मीद की किरण दिखाई है। शहरों के पब्लिक स्कूल की चमक दमक के सामने गरीब बच्चों के इस इंग्लिश स्कूल ने दिखाया है कि शिक्षा सिर्फ आदर्श हो सकती है व्यवसाय नहीं ।
बीआईटी,मेसरा , आईआईएम लखनऊ का तेज तर्रार नौजवान कुशल राज 1. 5 करोड़ रूपये का पैकेज छोड़कर आखिर क्यों मानव सेवा में लगा ? जवाब साधारण है आप कितना पैसा बटोर कर खुश होना चाहते हैं?,अगर इसकी सीमा नहीं है तो आईये एक घर में रौशनी जला के खश हो ले। ऐसे कई प्रोफेशनल उनके इस अभियान में जुटे हैं। धैर्य नारायण झा (धीरज ) ने अपने दादी "लाखो देवी " को समर्पित एक पुस्तकालय का नाम दिया है। विद्यादान की हिन्दुस्तानी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले लोग इस अभियान में जुड़ रहे हैं जिनका सरोकार इंसानियत से है शिक्षा से है विद्यादान से है । ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए झा ने अंग्रेजी बोलने की क्षमता विकसित करने की प्रतिभा टिप्स " स्पीक वेल " लिखी है । उनका मानना है बिहार में माँ चाहे पढ़ी लिखी हो या अनपढ़ लेकिन हर शिक्षित और कामयाब बिहारी के जीवन में उसकी मां /दादी का खास योगदान होता है जो उसे सतत ज्ञान हासिल की प्रेरणा देती है। वे अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी दादी लाखो देवी को देते हैं।
सरकारी संस्थानों का सदुपयोग करके कुशल राज चक्रवर्ती गुरुग्राम के ग्रामीण/शहरी गरीब बच्चो को मुख्यधारा में ला रहे हैं ,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं के नारे को जमीन पर बुलंद कर रहे हैं. लेकिन सरकार अपने इन संस्थानों का सदुपयोग नहीं कर पा रही है। बच्चों को आप क्वालिटी एजुकेशन दे उन्हें स्कील करे तो उन्हें किसी आरक्षण की जरुरत नहीं है। लेकिन सियासत सिर्फ आरक्षण की हो रही है क्वालिटी एजुकेशन की नहीं। देश बदल रहा है इसकी तस्वीर गुरुग्राम के इस गली न 5 में स्थित लोटस स्कूल के गरीब बच्चों के चेहरे पर झलकते आत्मविश्वास से साफ़ देखा जा सकता है। कम्प्यूटर और साइंस लैब में एक नया इतिहास रचने को आतुर ये बच्चे हमें इशारे में यह भी बता रहे हैं कि 20 साल पहले बिहार में अगर चरवाहा विद्यालय सिर्फ सियासत न होती तो शायद उनके माता पिता भी एक सम्मानीय जीवन के हक़दार होते।
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