अटल थे अटल हैं और अटल रहेंगे...

अटल थे अटल हैं और अटल रहेंगे   .गीता का यह उपदेश 'न दैन्यं न पलायनम्' ( दीनता नहीं चाहिए , चुनौतियों से भागना नहीं , बल्कि जूझना जरूरी है ) यह उनके जीवन का दर्शन था। देश उनके जन्म दिन को सुशासन दिवस के रूप में मना रहा है लेकिन यह जानना भी जरुरी है क्यों अटल थे अटल हैं और अटल रहेंगे। उनके साथ 50 वर्षो तक साया की तरह रहे शिव कुमार जी बताते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर को लेकर अटल जी काफी संजीदा थे। उनकी इच्छा थी कि जनम भूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण हो। लेकिन सोमनाथ से अयोध्या की आडवाणी जी की रथ यात्रा का प्रस्ताव कार्यकारिणी में आया तो अटल जी ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा इससे विरोध बढ़ेगा। लेकिन कार्यकारिणी ने एक स्वर से रथ यात्रा का प्रस्ताव पारित किया। शिव कुमार जी बताते हैं कि जब आडवाणी जी की यात्रा को हरी झंडी दिखाने खुद अटल जी पहुंचे और भव्य यात्रा की शुरुआत की हरी झंडी दिखाई। उत्सुकतावस् उन्होंने अटल जी से पूछ लिया आपने जब विरोध किया था तब हरी झंडी दिखाने क्यों आये। अटल जी का जवाब था वह मेरा फैसला था और रथ यात्रा पार्टी का फैसला है ,उसे मानना मेरा कर्तव्य और धर्म भी है। 
राजनीती के अखाड़े में अपनी प्रखर बौधिक क्षमता की बदौलत अटल जी 50 साल तक निरंतर अजेय रहे। अपने सिधान्तो लेकर वे हमेशा अटल रहे ..
हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।
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गैर कांग्रेसी सरकार के वे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने 6 साल देश के शासन की जिम्मेदारी संभाली और देश के आर्थिक प्रगति खासकर संचार और सड़क निर्माण से देश के गाँव को जोड़ने में अटल जी का योगदान इस सदी का सबसे बड़ा संचार क्रांति माना जा सकता है। .संवाद और संपर्क अटल जी के विकास दर्शन में शामिल थे और यही दर्शन उनके शासन काल में आदर्श बना। हजारो -लाखो लोगों के लिए यह वाकई कर लो दुनिया मुठ्ठी में का व्यवहारिक पाठ था। यही वजह है की भारत में संचार क्रांति और सड़क निर्माण का जो सिलसिला अटल जी ने शुरू किया उसने देश की दिशा और दशा बदल दी
.कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी को जोड़ने का अटल जी का प्रयास आज देश को भौगोलिक रूप से एक सूत्र में बाँध दिया है.
,उनकी संचार क्रांति ने देश में लोकतंत्र को दुबारा प्रतिस्थापित किया है .सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
ने आज मुल्क के करोड़ों नौजवानों अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब दिया है .नौजवानों का जीवन स्तर बदला तो राजनितिक सोच भी बदली है .यह भारत की जी डी पी की कहानी है जो जो 4 फीसद से 11 की छलांग लगा ली थी । यह उनके आर्थिक दर्शन का परिणाम था। उन्हें आर्थिक सुधार की डोर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव से थामी और दुनिया के एक बड़े आर्थिक सुधारक के फेहरिस्त में अपने को शामिल कर लिया ।
बाधाएं आती हैं आएं,घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
2003 के मई महीने मे प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कश्मीर दौरा कई मायने मे खास था।अटल जी के राजनितिक सफ़र की यह एक अभूतपूर्व घटना थी जिसे मैं कैमरे की आँखों से उनके कार्यक्रम को  कैद करने श्रीनगर पंहुचा था. जम्मू -कश्मीर असेंबली और संसद पर  आतंकवादी हमले के बाद अटल जी की यह पहली कश्मीर यात्रा थी .या यूँ कहिये 20 साल बाद भारत के किसी प्रधानमंत्री की यह पहली कश्मीर यात्रा थी .वर्षो बाद कश्मीर में साफ़ -सुथरी चुनाव का वादा पूरा करके अटल जी कश्मीर के आवाम से रूबरू होने आये थे .जम्मू कश्मीर के इतिहास मे वह पहला चुनाव था जिसमे चुनाव के दौरान धांधली और बूथ कब्जे के कोई आरोप नहीं लगे थे .वाजपेयी ने जैसा कहा वैसा ही फ्री एंड फेयर चुनाव की बात को साबित दिखा दिया था .जाहिर है 1987 के बाद अटल जी पहले प्रधान मंत्री थे जिन्होंने कश्मीर के आवाम का दिल जीतकर उनसे मुखातिव होने आये थे। .यह कोई नहीं जान रहा था कि इस आवामी सभा को संवोधित करते हुए वाजपेयी क्या ऐलान करेंगे. भारत -पाकिस्तन के बीच नफरत की बड़ी दीवार पहले से खड़ी थी। . सियासी गलियारे में लोग संशकित थे मानो अटल जी क्या कह जाए ,उन्होंने गुलाम एहमद महजूर का मशहूर शेर पढ़ा 


"बहारे फिर से आयेंगी .... और उन्होंने लोगों को दिल जीत लिया .कश्मीर से ही उन्होंने पाकिस्तान की तरफ एक बार फिर दोस्ती का हाथ आगे बढा दिया था ..वाजपेयी के साथ गए उनके सलाहकार भी प्रधानमंत्री के ऐलान से अचंभित थे .लेकिन मुल्क के लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने ये तमाम फैसले आम लोगों के बीच ही करना उचित समझा था ..वाजपेयी जी को किसी ने पूछा हुर्रियत के लोग संविधान के दायरे मे बात नहीं करेंगे ,उन्होंने कहा था वे संविधान के दायरे मे नहीं तो इन्शानियत के दायरे मे तो बात कर ही सकते है . .उस दौरे पर 85000 करोड़ रूपये का आर्थिक पकेज का ऐलान वाजपेयी जी  ने किया था ,कश्मीर मे ट्रेन की कवायद तेज करने की पहल उन्होंने ही की थी लेकिन वे जानते थे कि ये तमाम पॅकेज बेकार है जब तक यहाँ राजनितिक पॅकेज नहीं दिए जायेंगे .हुर्रियत कांफ्रेंस के सरबरा मौलाना अब्बास अंसारी ने एक बार मुझे बताया था कि वाजपेयी का राजनीती से सन्यास कश्मीर की सियासी पहल पर जबरदस्त झटका था। .हुर्रियत के लीडर मानते है कि अगर वाजपेयी होते तो यह मसला अब तक सुलझ गया होता .यही बात पाकिस्तान से लौटे एक पत्रकार ने मुझे कहा था कि "पाकिस्तान मे आप जहाँ भी जाय अगर लोग ये जान ले कि आप भारत से है तो पहला सवाल वाजपेयी के लिए पूछेंगे .लोग पूछते है क्या वाजपेयी फिर नहीं आयेंगे" ? शायद कभी नहीं आएंगे। सादर नमन !

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