भारत की सख्ती ने मसूद अजहर और पाकिस्तान को डाला मुश्किल में

2001 के जम्मू कश्मीर असेंबली अटैक ,पार्लियामेंट अटैक ,पठानकोट एयरबेस हमला ,उडी हमला ,पुलवामा अटैक ये लम्बी फेहरिस्त है  जैस ए मोहम्मद सरगना मौलाना मसूद अज़हर के जिसने भारत में फिदायीन हमले तेज करके पाकिस्तान की फ़ौज की चहेता बन गया था।लेकिन संयुक्त राष्ट्र के ताजा प्रतिबंध ने अज़हर और उसके आका आई एस आई को मुश्किल में डाल दीया है।  1994 पुर्तगीस पासपोर्ट लेकर यह मौलाना बांग्लादेश होते हुए भारत आया था।आईं एस आई ने अफगानी दहशतगर्द तंजीम हरकत उल अंसार का ट्रेनर बनाकर उसे कश्मीर भेजा  था। कश्मीर में अभी वह पैर जमाना शुरू ही किया था कि वह एक मुठभेड़ में फौज के गिरफ्त में आ गया। उसे छुड़ाने के लिए पाकिस्तान की ओर से कई साजिशे हुई लेकिन 1999 में  आई सी 814 हवाई जहाज को अगवा करके उसे आज़ाद करवाने में आई एस आई कामयाव हो गयी थी। लो कॉस्ट का यह आतंकी  फार्मूला  ब्लीड इंडिया बाय थाउजैंड्स कट्स से भारत को लहुलहान कर रहा था। लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद बालाकोट का एयर स्ट्राइक पाकिस्तान के परमाणु ताकत वाली नैरेटिव को ध्वस्त करके सीधे जैश ए मोहम्मद को निशाने पर लिया है। 
पिछले 30 वर्षों से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अघोषित  हमला बोल रखा है। इन वर्षों में हमारे 90  हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए हैं   । इस छदम युद्ध में हमारे 25   हजार से ज्यादा जवान मारे गए है .लेकिन अबतक  हमने अब और नहीं कह कर सिर्फ दुसरे आतंकवादी हमले का ही इन्तजार किया है ... 2001में कश्मीर असेम्ब्ली से लेकर  26 /11 के मुम्बई हमले  तक वही सूरत थी जो सूरत उडी और पुलवामा अटैक के वक्त थी। पाकिस्तान को एक और डोसियर का इन्तजार था लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ।भारतीय एयरफोर्स के पायलटों ने रात के सन्नाटे में ठीक वैसा ही करतब कर दिखाया जो 2 साल पहले सर्जिकल स्ट्राइक में एलिट कमांडो ने दिखाया था। लेकिन इस बार असर गहरा था। जैश का प्रमुख केन्द्र तबाह हो चुुका  था।पहलीबार भारत ने अपने शौर्य और पराक्रम का परचम पूरी दुनिया में लहरा दिया था।  अबतक  पाकिस्तान यह  जानता था  कि भारत एक ऐसा सोफ्ट स्टेट है जिसके पास कारवाई करने की न तो कोई राजनितिक इच्छाशक्ति है न ही उनमे एक संप्रभु राष्ट्र का जज्वा 
। भारत शक्ति ,वैभव, ज्ञान के मामले में भले ही अपनी पहचान दुनिया मे  बनाए हो, लेकिन स्टेट के रूप में उसे हमेशा उसे एक लचर , ज्यादा विवेकशील , कुछ ज्यादा ही धैर्यवान लीडर  से पाला पड़ा है। लेकिन इस बार नेतृत्व मोदी के हाथ था जो दोस्ती और दुश्मनी निष्काम भाव से निभाता है।

.पाकिस्तान में नयी हुकूमत सँभालते ही इमरान खान   ने एलान किया कि "बहुत हो चूका ,तारीख को भुला कर एक नयी शुरुआत करे ",कारोबार के जरिये रिश्ते सुधारने का उन्होंने दावा किया ,लेकिन उन्हें क्या पता कि जिस फ़ौज की बदौलत वे सत्ता पाए हैं वे उन्हें सिर्फ आर्मी के पॉलिटकल फेस और पी आर है..   
अमेरिका सहित वेस्ट में यह धारणा पक्की है कि पाकिस्तान में फौज ही असली सत्ता है । जाहिर है  फौज की जबतक बर्चस्व रहेगा  तबतक पाकिस्तान में मुल्ला और दहशतगर्द तंजीमों का वर्चस्व कायम रहेगा। अमेरिका भी इस बात को भलीभांति जानता है कि मसूद अज़हर अलक़ायदा का सबसे करीबी संगठन है। याद कीजिये 9 /11 हमले के बाद जब अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन के खिलाफ वॉर अगेंस्ट टेरर की कबायद तेज की तो मसूद अजहर ने न केवल ओसामा को तोड़ाबोड़ा की गुफाओं में छिपाया था  बल्कि अफगानिस्तान बोर्डेर पर पाकिस्तान फ़ौज की घेराबंदी तोड़ने के लिए जैश ए मोहम्मद ने लगातार फिदायीन हमले तेज कर दिया। संसद हमले के बाद जैसे ही भारत ने ऑपरेशन पराक्रम का एलान किया पाकिस्तानी फ़ौज वेस्टर्न बोर्डेर छोड़कर ईस्टर्न बॉर्डर पर जमा होने लगी और इस बीच आई एस आई और मसूद अज़हर ने मिलकर ओसामा को पाकिस्तान के अंदर दाखिल करा दिया था। यह वही मसूद अज़हर है जिसने लादेन  के कहने पर जनरल मुशर्रफ की हत्या की साजिश रची थी। बेनजीर भुट्टो की हत्या के आरोपी जनरल मुशर्रफ स्वीकार करते हैं  हैं कि साविक वजीरे आज़म बेनजीर की हत्या उसने नहीं करवाई लेकिन पाकिस्तानी फ़ौज की कारस्तानी से वे इंकार नहीं करते हैं। यानी जिस प्रोफेशनल फौज का हवाला देकर इमरान खान अपनी पीठ थपथपाते हैं उनमे आधे से ज्यादा तादाद जिहादियों की हैं ,जिसका आदर्श ओसामा या हाफिज या मसूद अज़हर है। ऐसे में इमरान खान से बातचीत का का क्या मतलब है उसे भारत के बुद्धिजीवी  और पत्रकार बेहतर समझ सकते हैं.ऐसा पहलीबार हुआ कि पाकिस्तान की ओर से इमरान खान पी एम मोदी से फोन पर बातचीत की कई बार सन्देश भेजवाया लेकिन हर बार उन्हें भारत से दो टूक जवाब मिला। 
भारत पाकिस्तान विभाजन के 72 साल बीत जाने के वाबजूद पाकिस्तान आजतक एक मुल्क नहीं बन सका है। डेमोक्रेसी तो अभी दूर की कौड़ी है। वहां सच्चा और झूठा मुसलमान होने को लेकर  बहस अभी बांकी है.सत्ता और संसाधन पर कब्जे की होड़ में समाज ,अहमदिया ,इस्माइली ,सिया , बिहारी ,मुहाजिर कई फिरके में बटा हुआ है।  ईशनिंदा कानून की आड़ में अल्पसंख्यकों को गुलाम से बदतर हालात में पंहुचा दिया गया  हैं। मध्यम वर्ग अभी तक अस्तितित्व में आया नहीं आया है। जाहिर है हर फ्यूडल लार्ड का अपना कबीला है और मजहब की बलादस्ती से सामंती लोग सत्ता पर काबिज हैं। अल क़ायदा से लेकर आई एस ,लश्कर से लेकर जैश पाकिस्तान में सत्ता और फौज के संरक्षण में निजामे मुश्तफा के लिए संघर्ष कर रहा है। उसके लिए मुल्क ,समाज और दूसरे मजहब के लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। 


पाकिस्तान को लेकर कश्मीरी समाज का कभी आग्रह नहीं रहा है। यकीन मानिये वहाबी इस्लाम के लिए कश्मीरी की सुफिज्म बकवास की चीज है। कश्मीर का मिज़ाज़ कभी भी पाकिस्तान के कबीलाई कल्चर से मैच नहीं करती है। यहाँ नुंद ऋषि और लालदेत भी मुसलमानों के आदर्श हैं। यहाँ दरगाहें समाज में बुजुर्ग का रुतबा हासिल किया हुआ है। पाकिस्तान में इन दरगाहों को नफरत की निगाहों से देखा जाता है। फिर ऐसा क्या है जो कश्मीर के पथरवाजो और आतंकियों को पाकिस्तान से जोड़ता है। मौलाना मसूद अज़हर गुमराह नौजवानो के  हीरो बन जाता है।  वह है कश्मीर का जमाते इस्लामी संगठन। यह दूसरीबार है जब सरकार ने इस संगठन पर पावंदी लगाई है लेकिन ताजुब की बात यह है कि हिज़्बुल मुजाइद्दीन जैसे खतरनाक आतंकी संगठन को पैदा करने वाली यह संस्था सरकारी संरक्षण में फलती फूलती रही और किसी ने उसकी गतिविधि को रोकने की हिम्मत नहीं की। जाहिर है वोट की सियासत ने इस देश की सम्प्रभुता को सबसे ज्यादा ठेस पहुचायी है। आज भारत में हर को तरक्की की ललक है जाहिर है सिक्योरिटी को प्राथमिकता देनी होगी लेकिन इसके लिए केजरीवाल और दिग्विजय जैसे नेताओं को नजरअंदाज करना होगा। जिस दिन हर का इंडिया फर्स्ट का संकल्प होगा फिर कोई मसूद अज़हर भारत के किसी कोने में हीरो नहीं बनेगा। 

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