पंचों के दरबाजे पर रामलला, है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़ तो आपसी सहमति क्यों नहीं ...

आख़िरकार राम जन्‍म भूमि मामले को अब मध्‍यस्‍थता से सुलझाने के लिए 9 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिण भारत के तीन प्रोफेशनल लोगों का नाम तय किया है। इनमें जानें-मानें आर्ट ऑफ लीविंग के संस्‍थापक श्रीश्री रविशंकर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मोहम्‍मद इब्राहिम खुलीफुल्‍लाह और वरिष्‍ठ वकील श्रीराम पंचू का नाम शामिल हैं । जस्टिस कुहिल्फुल्लाह को छोड़कर दोनों सदस्यों को विवादित मामले में हाथ आजमाने का बड़ा अनुभव है। प्रयास को कामयाबी से कतय नहीं जोड़ा जा सकता है।
पिछले प्रयागराज में संतो और विश्व हिन्दू परिषद की धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण को लेकर यही निर्णय आया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक इन्तजार करना चाहिए। अब सुप्रीम अदालत कह रही है उन्हें पंचों के फैसले का इन्तजार है। वर्षों बाद आज अदालत ने जिस भावना को आधार बनाते हुए आपसी सहमति से राय बनाने पर जोर दिया है ,यही बात तो संघ प्रमुख मोहन भागवत भी कह रहे थे। उन्होंने विवाद के समाधान का फार्मूला भी दिया था। दिल्ली में भविष्य का भारत के आयोजन में मैंने यही सवाल आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत जी से पूछा था "राम" इस देश की परंपरा हैं ,संस्कृति हैं , आस्था हैं ,सबसे बड़े इमाम हैं फिर राम मंदिर मुद्दा आपसी बातचीत से हल क्यों नहीं हो सकता ? क्या इसके लिए अदालत के फैसले या सरकार का अध्यादेश ही विकल्प है ?
उनका जवाब था:
"राम करोडो लोगों की आस्था से जुड़े हैं ,करोडो लोगों के आदर्श हैं और इससे अलग वे कई लोगों के लिए इमामे -हिन्द भी हैं ,इसमें राजनीति का प्रश्न अबतक होना ही नहीं चाहिए था । भारत में हज़ारो मंदिर तोड़े गए आज सवाल उन मंदिरो का नहीं रह गया है राम और अयोध्या ,राम जन्म भूमि की प्रमाणिकता वैज्ञानिक है आस्था है संस्कृति है इसलिए राम मंदिर का नर्माण हो और जल्द से जल्द हो।संवाद की भूमिका श्रेष्ठ हो सकती है ". .. लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ी।
2010 में इलाहबाद उच्च न्यायलय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 2.5 एकड़ विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांटकर मुस्लिम पक्ष के हिस्से में लगभग 50 गज जमीन का वैधानिक हक़ दिया था। आज सुप्रीम कोर्ट उसी फैसले को जमीन पर उतारने को लेकर तीन विद्वान लोगों की समिति बनायी है। समिति के सामने आज यह यक्ष प्रश्न है कि वाधा कौन डाल रहे हैं?
यह बात दुनिया जानती है कि भारत की हजारों वर्षो की सभ्यता और संस्कृति के ऐतिहासिक तथ्य अयोध्या और राम से ही सम्पूर्ण है। सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर क्यों भारत की सबसे पुरानी विरासत और उसकी पहचान वाली अयोध्या अपने एक छोटे से जमीन के विवाद का हल आपसी सहमति से नहीं ढूढ़ सकता ? इसी सवाल का जवाब ढूंढने सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्तता के लिए अयोध्या (फैज़ाबाद ) को ही चुना है। दिक्कत यह है कि इस पंचैती में स्थानीय लोग नहीं हैं और मिडिया की टिप्पणी अस्वीकार्य है। लेकिन इतना तय है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को स्थानीय लोगों ने स्वागत किया है। जिनका सरोकार मसले का निदान और भव्य मंदिर के निर्माणसे है।
अब यह सवाल नहीं है कि पिछले 9 वर्षो से सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर मामले में यह क्यों तय नहीं कर पाई है कि टाइटल शूट विवाद कौन सी बेंच सुने। आखिरकार कोर्ट में यह कश्मकश क्यों बनी कि भावना से जुड़ा यह मामला हर पक्ष को संतुष्ट नहीं कर पायेगा? फिर इलाहबाद हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इतने वर्षों तक क्यों रोका गया ? क्यों हिन्दू ट्रस्ट और मंदिरों के 67 एकड़ जमीन पर निर्माण कार्य को रोका गया? उनकी जमीन को इतने वर्षों तक सरकारी कब्जे रखने का क्या औचित्य था ? सवाल यह भी है कि इन वर्षो में समाधान के गंभीर प्रयास भी हुए हैं। जो दोनों पक्षों की ओर से भी हुई है और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी की है। फिर अबतक उन्हें सबजुडिस मामला होने के कारण क्यों रोका गया? सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब आज भी संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान में ढूढ़ा सकता हैं। जो शायद व्यबहारिक भी है और दोनों पक्षों को कुछ त्याग के लिए भी प्रेरित करता है।सिर्फ नजरिया बदलनी पड़ेगी और सियासत छोड़नी पड़ेगी।
प्रयागराज के दिव्य और भव्य कुम्भ में इस बार 24 करोड़ से ज्यादा लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई है।आस्था की डुबकी लगाने वालों में माननीय चीफ जस्टिस रंजन गोगोई भी हैं.. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक संतो ,वैरागियों और समाज के इस अद्भुत संगम को करीब से देखने की ललक रोक नहीं पाए। जाहिर है 24 करोड़ लोगों ने प्रयागराज कुम्भ को अपने अपने नजरिये देखा है । प्रधानमंत्री मोदी मंदिर जाने के बजाय स्वच्छता कर्मचारियों के पाँव धोकर प्रयागराज कुंभ को अपने दृष्टिकोण से देखा जो शुद्ध मानवतावादी और हर व्यक्ति में राम को ढूंढने की प्रेरणा दे सकती है। 24 करोड़ लोगों के अलग अलग नजरिया ही तो कुम्भ का आदर्श है। लेकिन भावना सिर्फ भारत के विराट स्वरुप का दर्शन थी। यही तो सनातन है. राम के प्रति भावना और नजरिये का यही सवाल आज सबके सामने है जो आज हिन्दू ,मुस्लिम ,अदालत ,मध्यस्तकार सबसे पूछ रहा है। अब बस करो राम लला को अब मत भटकाओ ..... सादर

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