आर्टिकल 370 और पाकिस्तान की सामंती सियासत : डेमोक्रेसी डे पर विशेष
आज़ादी के 72 वें साल में भी भारत पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर तनातनी बनी हुई है। जम्मू कश्मीर के सरहदी इलाके में गोले बरस रहे हैं, सीजफायर बस कागजी है। प्रधानमंत्री इमरान खान भारत से जंग लड़ने के लिए पाकिस्तान के लोगों को एलानिया उकसा रहे हैं तो उनके ही बड़बोले मंत्री शेख रशीद कहते हैं कि हम आर्थिक रूप से कमजोर हैं तो क्या हुआ भारत से हम अकेले जंग लड़ लेंगे। हमारी फौज कमजोर नहीं है। तीन जंग के बाद एक और जंग की धमकी ! ऐसा क्यों है? क्या पाकिस्तान का वजूद में आना सिर्फ भारत के खिलाफ नफ़रत थी, वजह कश्मीर थी ,वजह पाकिस्तान के सामंतो की सत्ता है ... वजह कुछ और भी हो सकते हैं लेकिन सच क्या है ? 19 करोड़ से ज्यादा आवादी वाले पाकिस्तान में महज 10 लाख लोग इनकम टैक्स देते हैं जबकि 125 करोड़ की आवादी वाले भारत में 10 करोड़ से ज्यादा लोग टैक्स देते हैं। भारत 2. 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी वाला मुल्क है और 5 ट्रिलियन के लिए जद्दोजेहद कर रहा है जबकि पाकिस्तान की पूरी इकॉनमी भारत के एक राज्य से भी कम है यानी मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन की बजट से भी कम। लेकिन वे शौक एटम बम की रखते हैं, नुक्लेअर मिसाइल और लड़ाकू विमानों की रखते हैं। आई एम एफ ,वर्ल्ड बैंक और दुनिया के तमाम विकसित मुल्को ने पाकिस्तान को अपना टैक्स बेस बढ़ाने और इकॉनमी को दुरुस्त करने की हिदायत देकर उसे लोन देना बंद कर दिया है लेकिन पाकिस्तान की जो सनक 70 साल पहले थी वही आज भी है। क्योंकि कश्मीर की सियासत पाकिस्तान में सामंती व्यवस्था को बरक़रार रखती है।
सामंती जमींदारों और सियासत के मजे हुए मुस्लिम लीग के खिलाडियों ने जिन्ना को आगे करके मजहब के नाम पर भारत का बटबारा करा दिया और उन शातिर जमींदारों ने अपने लिए एक अलग मुल्क पाकिस्तान बना लिया लेकिन मजहबी बहस से आगे वे एक इंच आगे नहीं बढ़ पाए। आज पाकिस्तान में सरकारी स्कूल से ज्यादा मदरसे हैं जहाँ सिर्फ इस्लाम की तालीम है या भारत के खिलाफ नफरत। ये सियासत की एक सोची समझी चाल थी जिसमे मॉडर्न एजुकेशन को ब्लॉक करके मध्यम वर्ग को कभी अस्तित्व में आने नहीं दिया । पाकिस्तान के जमींदार और पूंजीपतियों को मदरसा और मजहबी इदारों को चंदा देने में गुरेज़ नहीं है लेकिन पाकिस्तान में एक मॉडर्न स्कूल के लिए उनकी जेब खाली है। 19 वी शदी में सर सैयद अहमद खान ने मुस्लिम समाज में क्वालिटी एजुकेशन देने और नयी पीढ़ी को आधुनिक दुनिया के बराबरी में लाने के लिए भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की थी लेकिन विभाजन के बाद पाकिस्तान कोई सबक नहीं सीख पाया। लाहौर जैसा कारोबारी शहर हिन्दू और सिख समुदाय के चले जाने के बाद क्यों नहीं बड़े शहर का रूप ले पाया इसका मर्ज पाकिस्तान नहीं तलाश पाया (A Question of quality by Khalid Ahmad ) आज जब दुनिया के देशों में भारतीय श्रमिक ,डॉक्टर ,इंजीनियर और दूसरे प्रोफेशनल उस मुल्क को आगे ले जाने में अपना योगदान दे रहे हैं और वहां उनकी भारी मांग है। पाकिस्तान अपने नौजवानो को मुस्लिम मुल्क में भी रोजगार के लिए सक्षम नहीं बना पा रहा है ,उसके डॉक्टरों को सऊदी अरब भी बाय बाय कर रहा है ,लेकिन पाकिस्तान के हुकुमरानों को कश्मीरियों की चिंता है जिनका पर कैपिटा इनकम पाकिस्तान के किसी शहर में रहने वालों से कई गुना ज्यादा है और खानपान पाकिस्तान के किसी अमीरजादे से कहीं बेहतर है।
आज़ादी के 70 साल के बाद भी जमींदारों ,पुराने रजबारो और कारोबारियों का उच्च वर्ग पाकिस्तान में कायम है जो या तो हुकूमत में हैं या फिर फौज के आलाधिकारी है. दूसरा तबका निम्न वर्ग का है जिनकी भूमिका मजदूरी और मजहबी तंजीमो के एक्टिविस्ट के रूप में है। अल्लाह ,अमेरिका और आर्मी के इस मजहबी गठजोड़ ने पाकिस्तान में कभी मध्यम वर्ग को पनपने ही नहीं दिया और आतंकवाद के जरिये इन सामंती लोगों ने अमेरिका सहित कई यूरोपीय मुल्को से अरबों डॉलर बटोरे। आज अमेरिका की भूमिका में वहां चीन आ गया है। लेकिन इन वर्षों में भारत में मिडिल क्लास देश चला रहा है.सरकार बनाने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। नई आर्थिक नीति के बाद इन 30 वर्षों में सबसे ज्यादा अरबपति भारत में इसी मध्यवर्ग से बने हैं जिनकी तादाद दुनिया के किसी भी मुल्क से ज्यादा है।
मध्यम वर्ग में कौतुहलता है/एक संकल्प है , वह अपने साथ निम्न वर्ग के लोगों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। कह सकते है कि यही आईडिया ऑफ़ इंडिया है जो आर्टिकल 370 के कारण कश्मीर को इस विकास की धारा से नहीं जोड़ पाई
लेकिन बदलाव के साथ बदलने वाला भारत इनदिनों टीवी गुरुओं के प्रवचनों से थोड़ा कंफ्यूज है। तथाकथित लिब्रल और देशभक्त संपादको-पत्रकारों ने अपनी तरफ से नैरेटिव वाली ज्ञान वर्षा की बाढ़ ला दी है । देश प्रेम और देश द्रोह के मुद्दे पर टीवी स्टूडियो में समुद्र मंथन जारी है फर्क सिर्फ इतना है कि इस मंथन का विष पीने के लिए सिर्फ दर्शक मजबूर है..आंकड़े देखे तो सबसे ज्यादा कवरेज टीवी न्यूज़ में पाकिस्तान या कश्मीर को मिलता है। वजह पाकिस्तान और कश्मीर की खबरों में एक्शन है ड्रामा है टी आर पी है। देश के किसी चैनल ने कश्मीरियत की कोई पॉजिटिव खबर शायद ही चलायी होगी।कुछ परिवारों में कैद कश्मीर की सत्ता शायद ही कभी बहस का मुद्दा बनता हो लेकिन निगेटिव खबरे /मजहबी उन्माद की खबरे चैनल के प्राइम टाइम बहस का मुद्दा बन जाते हैं । कश्मीर आजतक नैरेटिव का शिकार रहा है। पाकिस्तान इसी नरेटिव से वर्षों तक पश्चिमी मुल्को को बेवकूफ बनाता रहा है। लेकिन आजतक किसी ने पाकिस्तान से यह नहीं पूछा अगर मजहब के नाम पर कश्मीर उसे अपना लगता है फिर बांग्लादेश क्यों अलग हुआ ? क्यों आज बिलावल भुट्टो सिंध देश की बात करते हैं ,क्यों बलूचिस्तान पिछले कई वर्षो से एक आज़ाद होने के लिए जंग लड़ रहा है ? क्यों पख्तून ,सरायकी और मुहाजिर पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं ? क्यों इन 72 वर्षों में पाकिस्तान का लोकतंत्र, फौज और कठमुल्लाओं के कब्जे में है? क्यों 9 फीसद वाला अल्पसंख्यक तबका 2 फीसद से नीचे सिकुड़ गया है। पाकिस्तान जब अपनी 19 करोड़ की आवादी को दो जून की रोटी ,आधुनिक तालीम और चिकित्सा की व्यवस्था नहीं कर सकता तो उसके सामने जनता को जेहाद करने और भारत के खिलाफ भड़काने के अलावे कोई विकल्प नहीं बचता है... दुनिया अबतक यह नहीं जान पायी कि पाकिस्तान का हुकुमरान कौन है ? क्या जम्हूरियत वहां जड़ें जमा पायी ? सबसे बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान को यह बताना बाकी है कि उसकी सांस्कृतिक जड़े आज भी भारत में है। पाकिस्तान के लोग सऊदी, गल्फ और मिडिल ईस्ट से नहीं आये थे। पाकिस्तान अगर अपना इतिहास सिर्फ 72 साल पुराना मानता है तो आधुनिक होने में,इस मुल्क में लोकतंत्र बहाल होने में अभी काफी वक्त लगेंगे। अगर ख्वाजा शरीफ दरगाह के दीवान जैनुल अबेदीन की बात सच माने तो पी एम् मोदी ने भारत -पाकिस्तान के बीच तनाजे की वजह आर्टिकल 370 ख़त्म करके ,दोनों मुल्कों के बीच एक ब्रेह्तर रिश्ते बनाने का मौका दिया है ,
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