अमित शाह : सियासत को फूल टाइम सेवा मानते है पार्ट टाइम नहीं 

 


गुजरात असेंबली इलेक्शन के दौरन पत्रकारों के बीच ऑफ द रिकॉर्ड बात  करते हुए अमित शाह जी  से मैंने पूछा था कि सौराष्ट्र में लोगों की बढ़ती उम्मीदें इस बार आपकी पार्टी को नुकसान पंहुचा सकती  है? सौराष्ट्र के इलाके में मैंने लोगों की ये नाराज़गी देखी  थी। गर्मी के सीजन में कई इलाकों में रोज पानी नहीं पहुँच पाता था । जबकि कुछ  वर्ष पहले तक इन इलाकों में हफ्ते में एक बार पानी उपलब्ध होना बड़ी बात होती थी। तब यहाँ टैंकरों से पानी भेजा जाता था। अब हर घर तक पाइप लगे हैं। अमित शाह का जवाब था " लोगों में एस्पिरेशन बढ़ना ,लोगों को तरक्की के साथ चलना  ही तो हमारे लिए परिणाम लाता हैं। बीजेपी दूसरे पार्टी से अलग क्यों है क्योंकि इससे लोगों की उम्मीदें जुडी हैं। जाहिर है नाराज़ भी वे हम से ही  होंगे। " धारा 370  हटाए जाने के प्रस्ताव को लेकर संसद और संसद से बाहर एक मजबूत अपील के साथ वे  यही  एस्पिरशन की बात कह कह रहे थे। यह देश की  आकाक्षां साकार करने का वक्त है।  अब स्टेटसको नहीं चलेगा। सी ए ए के मुद्दे पर भी उन्होंने मजबूती से लोगों के सामने सरकार की राय रखी। देश प्रथम एक संकल्प। कोरोना महामारी के बीच वही अमित शाह दिल्ली में बढ़ते संक्रमण और कैजुअल्टी के बीच सामने आये और हस्पताल से लेकर  सुरक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था कराकर हालत को पंद्रह दिनों के अंदर काबू में करने की कोशिश की। एक सांसद के रूप में पहलीबार मोदी जी आये और देश के प्रधानमंत्री बने और अमित शाह गृह मंत्री। लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि देश ने जिन समस्या के समाधान की उम्मीदें छोड़ दी थी। इस दौर में बहुत  सारी समस्या एक साल के अंदर हल हो गयी। 


विविधताओं से भरे इस देश के  सियासी समाजी मिजाज को समझने वाला अमित शाह  पहली बार उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रभारी बने और लम्बे अरसे के बाद बीजेपी को 2014 के चुनाव में अपार सफलता दिलाई। फिर पार्टी अध्यक्ष बने  और 2019 में  गृह मंत्री बनाए गए  तो लोगों ने इस फैसले को काफी सराहा। नंबर 1 और 2 के बहस के बगैर कह सकते हैं कि अमित शाह ने मोदी जी के लिए आडवाणी जी की भूमिका में अपने को स्थापित किया है ।  
90 के दशक में  लाल कृष्ण आडवाणी अटल जी के नंबर 2 थे। अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी तो आडवाणी जी नंबर 2 की भूमिका में गृह मंत्री बने ।  ये अलग बात थी कि उस दौर में अमित भाई गांधीनगर में आडवाणी जी के चुनाव प्रभारी हुआ करते थे। गुजरात के गांधी नगर क्षेत्र में कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से संपर्क का ज़िम्मा अमित शाह का होता था। वे गुजरात में आडवाणी जी के फेस बने ,अपने लगन और मेहनत से आज दिल्ली में उन्होंने आडवाणी के समकक्ष अपनी हैसियत बनायी है।
 
इतिहास अपने आपको कैसे दोहराता है यह भी अमित शाह के साथ देखा जा सकता है। पहलीबार लोकसभा चुनाव अमित शाह ने गांधीनगर से लड़ा जिसका नेतृत्व वर्षों तक आडवाणी जी करते थे और पहलीबार अमित शाह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए तो नार्थ ब्लॉक में उन्हें वही गृह मंत्रालय मिला जहाँ 1999 से 2004 तक लाल कृष्ण आडवाणी बैठे थे। यह भी संयोग है कि गुजरात के सरदार पटेल के बाद लाल कृष्ण आडवाणी को लौह पुरुष माना जाता था अब बारी एक और गुजराती कर्मवीर  की है जिन्हे इस कतार में अपने लिए लौहपुरुष के शौर्य को रेखांकित कराना  है। 

मुल्क की सियासत और सामाजिक आर्थिक विकास के पहलुओं को अमित शाह बखूबी जानते है। 2019 के चुनाव प्रचार में जब डंके की चोट पर अमित शाह कहते थे  कि  मैं  50 फीसदी  वोट शेयर की राजनीति करता हूँ तो शायद लोगों को मजाक  था। उन्होंने  17 राज्यों में पार्टी का वोट प्रतिशत 50 फीसद को पार कर कर यह साबित कर दिया था  । 
2014 में जब पहलीबार अमित शाह को गुजरात से उत्तर प्रदेश आये थे  तो कई लोग मजाक करते थे मोटा भाई को नहीं पता ये उत्तर प्रदेश है जहाँ बायां हाथ क्या कर रहा है वह दायें  को पता नहीं होता है। लेकिन अपने 60 फीसद वोटर को टारगेट बनाकर अमित शाह ने अभियान छेड़ा और 1,47000 बूथ पर पन्ना मैनेजर के दम पर मेरा बूथ सबसे मजबूत का संकल्प पूरा किया। 52 फीसद वोट पर पहलीबार बीजेपी ने कब्ज़ा जमा कर 72 सीटें जितने में कामयाबी पायी थी । माइक्रो मैनेजमेंट का मास्टर अमित शाह ने ग्राउंड लेवल पर नेतृत्व खड़ा करने की अद्भुत कला भी पायी है और हिंदुस्तान में बीजेपी के विकल्प वाली तमाम पार्टियों को आज जमींन से जुड़ने का नुश्खा भी दिया है । मैंने हिमाचल के पिछले इलेक्शन में पन्ना मैनेजरों को अपने घरों से मतदातादाओं को घर घर जा कर वोट करने के लिए उत्साहित करते हुए देखा है। दुर्गम पहाड़ पर जहाँ कोई नेता नहीं आये लेकिन पार्टी का पन्ना मैनेजर वहां काम कर रहा है। 


 अमित शाह को लेकर कुछ बुद्धिजीवी  भय का वातावरण बना रहे हैं। लेफ्ट लिबरल मीडिया  अपने हिसाब से भरपूर  निगेटिव पब्लिसिटी कर रही है।  लेकिन शायद वे भूल जाते हैं कि यु पी ए सरकार और कांग्रेस की गैर कानूनी प्रपंचो के कारण अमित शाह को वर्षों तक बुरे दिन से भी दो चार होना पड़ा था,यहाँ तक कि उन्हें गुजरात से तड़ीपार कर दिया गया  । उनपर जितना कानूनी प्रपंच का जुल्म ढाया गया वे उतने ही मजबूत लीडर बन कर उभरे। अमित शाह को इस सियासी प्रपंच ने सियासत के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध कर दिया और उन्होंने लोकतंत्र की मर्यादा में सियासत को सेवा और आदर्श बना लिया। कह सकते हैं कि आज के अमित शाह की इस मजबूत इरादे को बनाने में कांग्रेस पार्टी का भी अहम् योगदान है। 

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