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झारखण्ड चुनाव ;२००९ का सबसे बड़ा सियासी हादसा

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झारखण्ड में कौन जीता कौन हारा की समीक्षा अभी जारी है .किंग और किंगमेकर के इतिहास और भूगोल का विश्लेषण अभी जारी है . सत्ता पाने का दंभ प्रदर्शन और खोने की खीज अभी जारी है . लोकतंत्र के नाम पर व्यवस्था का चीरहरण अभी जारी है . यानी २००९ के सबसे बड़ा सियासी हादसा की समीक्षा अभी बांकी है . छोटे राज्य और विकास के बड़े बड़े  सपने के साथ सन २००० में झारखण्ड अस्तित्वा मे आया था . लोकतंत्र के नाम पर कई छोटी बड़ी पार्टियों ने विकास का जिम्मा अपने ऊपर लेने की जद्दोजहद शुरू की .जाहिर है पुरे ८ वर्षों मे मुख्यमंत्रियों की कतार लग गयी . और तो और विकास का जिम्मा एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को भी दिया गया .लोकतंत्र के नाम पर  सत्ता और व्यवस्था का निरंतर बलात्कार होता रहा और लोग चुप चाप तमाशा देखते रहे . चुनाव के दौरान यह बताया गया की पूर्ब मुख्यंमंत्री ने अपने दौर में ४ हजार करोड़ रूपये की अकूत दौलत बनायीं .सवाल यह उठता है इससे पहले साबिक ६ मुख्यमंत्रियों ने कितनी दौलत बटोरी . चुनाव अभियान में भ्रस्टाचार प्रमुख मुद्दा बना .मुधू कोड़ा और उनके निर्दलीय सहयोगी मंत्री सवालों के घेरे में आये .कई साबिक मंत्

vinod mishra ka blog: और कितने राज्य पहले एक देश तो बनालो

और कितने राज्य पहले एक देश तो बनालो

और कितने राज्य पहले एक देश तो बनालो

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मुझे कल रात एक मित्र का फोन आया .सियासत से उनका दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है लेकिन पहलीबार उन्होंने सियासी मैदान मे कूदने की इच्छा जताई . उनके हिसाब से यह एक अच्छा मौका है .तैयारी के नाम पर उनके पास गाँधी जी का सत्याग्रह का अस्त्र है . चन्द्र शेखर राव की तरह वे आमरण अनसन पर भी जा सकते है ,अगर मिडिया उनका साथ दे . यानी उनके आमरण अनसन की पल पल की खबर देकर मिडिया उनके पक्ष में एक माहोल जरूर बना सकती है .लोग उनके साथ नहीं है तो क्या हुआ मीडिया के जरिये वे लोगों के बीच जरूर पहुँच जायेंगे . मैंने पुछा आपकी मांग क्या होगी ? उनका जवाब था मिथिला राज्य .मिथिलांचल मांगने के पीछे उनका यह तर्क था कि बिहार का यह इलाका नेतृत्वा बिहीन है ,जाहिर है तरक्की के मामले मे भी बिहार में सबसे पीछे है . मैंने उनसे पुछा कि मिथिलांचल मे आपको कोई जानता नहीं कोई पहचानता नहीं फिर आपकी बात को लोग गंभीरता से लेंगे इसमें मुझे शक है . अति उत्साहित मेरे मित्र का मानना था कि मधु कोड़ा को कौन जानता था ,अर्जुन मुंडा को कौन जानता था ,बाबू लाल मरानादी को कौन जानता था .बी सी खंडूरी को कौन जानता था ,जब अलग राज्य बना तभी तो लोग

vinod mishra ka blog: कश्मीर मे किस गन से कौन मरा ,ढूंढ़ते रह जाओगे

vinod mishra ka blog: कश्मीर मे किस गन से कौन मरा ,ढूंढ़ते रह जाओगे

कश्मीर मे किस गन से कौन मरा ,ढूंढ़ते रह जाओगे

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गृह मंत्री पी चिदम्बरम की बातचीत की पहल को आतंकवादिओं ने जोर का झटका लेकिन धीरे से दिया है .मौलवी फज़लुल हक कुरैशी को गोली मारकर हिजबुल मुजाहिद्दीन ने यह भी बता दिया है कि उन्हें नज़रंदाज़ कर हुर्रियत के लीडर अपनी लीडरी नहीं चला सकते . हिजबुल के इस हमले ने हुर्रियत के लीडरों को खामोश कर दिया है . १९७१ मे फजलुल हक कुरैशी खुद एक आतंकवादी तंजीम अल फ़तेह बनाकर बन्दूक की जोर पर कश्मीर को आज़ाद कराने निकले थे . बाद में उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर जे के एल ऍफ़ ने वह मोर्चा संभाल लिया था . लेकिन कश्मीरी लीडरों की यह आज़ादी पाकिस्तान को रास नहीं आई सो उसने जे के एल ऍफ़ को धकेल बाहर किया,यासीन मालिक कश्मीर का गांधी बन गए  और उनकी जगह पाकिस्तान ने हिजबुल मुजाहिद्दीन को सामने लाया . इस तरह हुर्रियत के तमाम लीडर किसी न किसी आतंकवादी तंजीम से जुड़े या फिर उनका नेतृत्वा किया ,ये अलग बात है उनकी यह गतिविधि तब तक जारी रही ,जब तक पाकिस्तान ने उन्हें ऐसा करने की इजाजत दी . इस दौर मे मौलवी मिरवैज फारूक आतंकवादी के गोलियों के शिकार हुए , मिरवैज ओमर फारूक ने न केवल अपने वालिद को खोया बल्कि उनके चाचा को आतंकवा

२६\११ ! दुनिया हम पर हस रही होगी तो पाकिस्तान ठहाका लगा रहा होगा

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मुंबई हमले मे शामिल पकड़ा गया पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसब के ट्राइल पर हमने अबतक ३१ करोड़ रूपये खर्च किये है .इन हमलों में  पाकिस्तान के स्टेट और नॉन स्टेट एक्टर के खिलाफ हमने ७ दोसिएर पाकिस्तान की हुकूमत को सौपे है . लेकिन पाकिस्तान से आज भी सबूत की मांग की जा रही है . यानि पुरे साल हम दुनिया को बताते रहे कि हमलो के आरोपियों को पाकिस्तान बचा रहा है . हमारी सरकार ने सबूत का पुलिंदा तैयार करके पूरी दुनिया को समझाने की कोशिश की है कि मुंबई हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गयी थी ,पाकिस्तान में ही दहशतगर्दों को ट्रेनिंग मिली ,पाकिस्तान से ही उन्हें भेजा गया ..लेकिन हमसे  और सबूत देने की बात की जा रही है . ट्राइल कोर्ट में मौजूद अजमल आमिर कसब को लगातार हँसते देखकर जज ने डाट लगायी थी . लश्कर का यह दहशतगर्द भली भाति समझता था कि यह ट्राइल प्रोसेस अभी लम्बा चलेगा और कभी ऐसी स्थिति भी आएगी कि उसे या तो आज़ाद करा लिया जायेगा या फिर उसे मुआफ कर दिया जायेगा . अमेरिका के ९\११ के हमले की जांच कमिटी ने माना था कि अमेरिका के ऊपर यह हमला ऍफ़ बी आई की कल्पना की चूक थी . यानि ऍफ़ बी आई यह कल्पना नही

कहाँ है आपका गाँव पता मिले तो मुझे जरूर बताएं

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मुझे याद है फोचाय मरर का वह गीत "कखन हरब दुख मोर हे भोलानाथ "इसी गीत से हमारी सुबह की शुरुआत होती थी .फोचाय मरर के इस गीत के साथ शुरू होती थी कई आवाजे ..... मवेशियों के गले मे बंधी घंटिया ,किसानो की चहल पहल ... दूर से आती ढेकी की आवाज ... उखल समाठ की आवाज ... अल सुबह की ये सारी आवाजे मिलकर एक मेलोडी बना रही थी. कह सकते है कि मिथिला के गाँव की यह सास्वत पहचान थी . सामाजिक सरोकार का  विहंगम दृश्य मिथिला के हर गाँव मे मौजूद था . जहाँ हर आदमी हर की जरूरत में शामिल था . अपने इसी गाँव को तलाशने मै काफी अरसे के बाद गाँव पंहुचा था .फोचाय मरर के कखन हरब दुख मोर हे भोला नाथ सुनने के लिए मै सुबह से ही तैयार बैठा था ... लेकिन न तो फोचाय मरर की आवाज सुनाई दी न ही कही से मवेशियों की घंटी की आवाज ,न ही कही किसानो की चहल पहल .. ढेकी और उखल न जाने कब के गायब हो चुके थे . गाँव का वह नैचुरल अम्बिंस खो गया था ..या यूँ कहे की गाँव पूरी तरह से निशब्द हो गया था . मायूसी के साथ मै उठा उस अम्बिंस को तलाशने जो मेरे दिलो दिमाग में रचा बसा था .. शायद इस भ्रम में कि विद्यापति खो गए तो क्या हुआ लोडिक सलह

नक्सल के खिलाफ ज़ंग से पहले ही होम मिनिस्टर का यू टर्न

नक्सल आतंक के खिलाफ नवम्बर महीने से जोरदार हमले की तैयारी थी . ऑपरेशन ग्रीन हंट की तैयारी मीडिया के द्वारा छन छन कर लोगों के बीच आ रही थी . नगारे बज रहे थे मानो फाॅर्स बस्तर के जंगल में घुसेंगे और गणपति से लेकर कोटेश्वर राव तक तमाम आला नक्सली लीडरों को कान पकड़ कर लोगों के बीच ले आयेंगे . लेकिन अचानक गृह मंत्री चिदम्बरम ने इन तमाम अभियान पर पानी फेर दिया . गृह मंत्री ने कहा है ओपरेशन ग्रीन हंट मीडिया का दुष्प्रचार था . नक्सल के खिलाफ ऐसे किसी अभियान की बात सरकार अबतक की ही नहीं है . यानि कैबिनेट कमिटी ओन सिक्यूरिटी की बात एयर फाॅर्स के ऑपरेशन की बात . नक्सल प्रभावित इलाके में सेना से मदद लेने की बात .सबकुछ महज एक बकवास था खबरिया चैनल अपने मकसद के कारण ऐसी खबर चला रहे थे . सरकार के इस अभियान के खिलाफ बुद्धिजीवियों का अभियान महज एक स्टेज शो था . गृह मंत्री ने कहा है कि वे नक्सल के खिलाफ अभियान छेड़ने की बात नहीं कह रहे है बल्कि अगर इस अभियान में राज्य सरकार उनसे मदद की अपेक्षा करती है तो उन्हें मदद दी जायेगी . यानि ज़ंग से पहले ही सरकार ने नाक्साली के आगे हथियार डाल दी है . कह सकते है

बन्दूक चलाने से पहले जरा मजबूती से खड़े तो होइए

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मेरे साथ बैठे ८० साल का बुजुर्ग बार बार एक खबर की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट करा रहे थे . मेट्रो मे बैठा मै अखबार पढने मे मशगूल था .लेकिन मेरे साथ बैठे बुजुर्ग  सरदारजी मुझसे पाकिस्तान मे हुए धमाके की खबर की जानकारी चाहते थे . मैंने उन्हें बताया कि पेशावर मे हुए इस धमाके में १०० से ज्यादा लोग मारे गए है .मायूसी के साथ सरदारजी ने कहा देखना यहाँ भी यही होने वाला है . मैंने उन्हें लगभग दिलासा देते हुए बताया कि सर ऐसा हिंदुस्तान में नहीं हो सकता है .उन्होंने पुछा क्यों ? मैंने कहा यहाँ के लोग पाकिस्तान से ज्यादा सभ्य है ज्यादा पढ़े लिखे है . सबसे खास बात यह है है कि यहाँ के  समाज ने हिंसा को लगभग खारिज किया है . सरदारजी ने मुझे समझाते हुए बताया कि पाकिस्तान से ज्यादा वल्नेराब्ल समाज भारत का है यहाँ हिंसा महज एक अफवाह से फ़ैल जाती है .यहाँ हिंसा ताक़त बताती है यहाँ हिंसा ही विचारधारा को मजबूती देती है . आप बताये नक्सली ने  किस विचारधारा को लेकर जनांदोलन किया था .नक्सली का विस्तार इसलिए संभव हुआ क्योंकि उसने माओ की किताब नहीं बाटी बल्कि बन्दूक को आम आदमी के बीच सुलभ बना दिया . आज हिंसा की बदौलत नाक

कश्मीर को सियासी मसला बताकर क्या ओमर अब्दुल्ला झूठ नहीं बोल रहे है ?

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ओमर अब्दुल्ला मानते है कि कश्मीर में नौजवानों ने पैसे के लिए या फिर तरक्की के लिए बन्दूक नहीं उठाई थी . नवजवान चीफ मिनिस्टर मानते है कि कश्मीर में बन्दूक लोगों ने मसले के हल के लिए उठाया था . वादी में ये खून खराबा कश्मीरियों ने आज़ादी के लिए किया था . मार्केटिंग की दुनिया से लौटे ओमर साहब सियासी करियर में जोर आजमैस कर रहे है . अरबी में एक कहावत काफी प्रचलित है कि जिसने ज्यादा दुनिया घूमा हो वह उतना ही ज्यादा झूठ बोलता है . ओमर अब्दुल्ला अपने खानदान की नाकामयाबी को छुपाने के लिए सीधे झूठ का सहारा ले रहे है . इन्हें यह याद दिलाने कि जरूरत है कि १९४८ में जब पाकिस्तानी फौज ने कश्मीर पर आक्रमण किया था तो कश्मीर के हजारों लोगों ने पाकिस्तानी गुरिल्लाओं को रोका था . सैकडो की तादाद में लोग शहीद हुए थे . बारामुल्ला में पाकिस्तानी फौज ने सैकडो बहनों की असमत्दरी की थी .भारत में कश्मीर विलय का एलान होने के साथ ही भारतीय फौज ने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को मार भगाया था . भारतीय फौज के स्वागत में लाखों की तदाद में जमाहोकर कश्मीरियों ने भारत के प्रति अपने समर्थन का इजहार किया था . याद रखने वाली बात यह

ज़ंग से पहले ही नक्सलियों के आगे हथियार डाल रही है सरकार

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नक्सालियों के गिरफ्त से आखिरकार पुलिस ऑफिसर अतिन्द्र्नाथ दत्त बाहर आ गए । लेकिन उनकी यह रिहाई एक बार फ़िर देश की सुरक्षा व्यवस्था को आइना दिखा गई । अतिन्द्र्नाथ के बदले में पशिम बंगाल सरकार को २३ नाक्सालियो को छोड़ना पड़ा । इनमें से १२ ऐसे नक्सल आरोपी थे जिनपर कई हत्याओं ,आगजनी का आरोप था । और इस रिहाई को नक्सली नेता कोटेश्वर राव डंके के चोट पर अंजाम दे रहे थे । और बेवस सरकार हाथ पर हाथ धरे नक्सालियों के हर आदेश का पालन करती रही । चूँकि सरकार ने नक्सालियों के ख़िलाफ़ ज़ंग का एलान कर रखी थी सो उन्होंने एक युद्घ कैदी को रिहा किया है । सरकार को ऐसी शर्मिंदगी न तो आई सी ८१४ के २६५ यात्री को बचाने के लिए झेलनी पड़ी थी न तो रुबिया सईद की रिहाई के नाम पर जे के एल ऍफ़ के १४ दहशतगर्दों को छोड़ने के वक्त हुई थी । यह सीधे तौर पर पाकिस्तान की साजिश के आगे सरकार का समर्पण था ,लेकिन इस बार नक्सली महज एक छोटी सी गुंडों की टोली को लेकर सरकार को ललकार रहे थे । बाद की सरकार ने इसे आतंकवाद के आगे घुटने टेकने का नाम देकर नई होस्टेज पॉलिसी बनाई थी जिसमें होस्टेज के नाम पर कोई समझौता नही करने का वचन दिया गया

बुद्धिजीवियों के मुह बंद किए बगैर नक्सल को हराना मुश्किल

कोबाद गाँधी के लिए नक्सालियों का संघर्ष जारी है । कोबाड गाँधी सी पी आई माओवादी के पोलित ब्यूरो के अग्रिम पंक्ति के लीडर है । उन्हें पुलिस के गिरफ्त से बाहर निकलने के लिए नक्सली खून की नदियाँ बहा रहे है । और उधर रिलीज़ ऑफ़ पॉलिटिकल प्रिसोनेर्स नामकी एक फर्जी संस्था कोबाड गाँधी की रिहाई के लिए तथाकथित बुद्धिजीवियों को गोलबंद कर रही है । ध्यान रहे इसकी अगुवाई वही एस आर गिलानी कर रहे है जिनका तालूकात पुलिस ने पार्लियामेन्ट हमले से जोड़ा था । उधर लालगढ़ के खुनी आन्दोलन के नेता चक्रधर महतो की रिहाई के लिए महा श्वेता देवी से लेकर बंगाल के नामी गिरामी बुद्धिजीवी आन्दोलन पर उतारू है । ममता दीदी चक्रधर महतो को नक्सली नही मान रही है । महाश्वेता देवी उसे गरीबों के मशीहा मान रही है । ठीक उसी तरह जिस तरह डा विनायक सेन की गिरफ्तारी के विरोध में दुनिया भर के मानवाधिकार संस्था छत्तीसगढ़ सरकार की पीछे पड़ी हुई थी । यह नक्सली प्रचार का असर है या फ़िर तथाकथित बुद्धिजीवियों का नक्सली आन्दोलन से सीधे जुडाव यह बताना थोड़ा मुश्किल है । लेकिन इतना तो तय है नाक्साली को आधार दिलाने में जितना इन बुद्धिजीवियों ने भूमिक

प्यार करो या नफरत हम है बिहारी

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बिहार एक बार फ़िर चर्चा में है । चर्चा के कई कारण है ,नक्सली हमले में १६ लोगों की मौत ने बिहार को एक बार राष्ट्रीय मिडिया की सुर्खियों में ला दिया है । वही लालू यादव और राम विलास पासवान अपने जातीय समीकरण के जरिये दुबारा बिहार में अपनी सियासी जमीन तलाश रहे है । जादिवाद की लडाई में उलझे बिहार में नक्सालियों ने दुबारा २० साल पुरानी रणनीति अपनाई है । ये अलग बात है कि पटना ,गया ,औरंगाबाद ,अरवल ,रोतास ,जेहानाबाद की जातिवादी जंग अब मुंगेर ,खगरिया मे लड़ी जा रही है । एम् सी सी और सी पी आई एम् एल (पी डब्लू ) से आगे बढ़कर नक्सालियों ने अखिल भारतीय स्तर पर सी पी आई माओवादी का चोला पहन लिया है लेकिन बिहार में उसके पुराने प्रयोग जारी है यानि जातियों के बीच रंजिश को नाक्साली ने खंघालने की कोशिश की है । खगरिया में हुए नरसंहार में मारने वाले मुशहर समुदाय के है तो मरने वाले कुर्मी ज़ाति के लेकिन दोनों जाति नीतिश सरकार के समर्थक माने जाते है । नीतिश सरकार के महादलित गठजोड़ का मुसहर समुदाय खास हिस्सा है जिसे रामविलास पासवान के दवंग पासवान जाति के दलित से अलग किया गया है । नीतिश की सियासी रणनीति ने दलितों

मवेशी क्लास का सफर ....सच बताने पर थरूर पर गुस्सा क्यों

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विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर कब नप जाए किसी को नही पता । विपक्ष के अलावा कांग्रेस पार्टी के आला लीडरों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है । आख़िर शशि थरूर का कशुर क्या था सिर्फ़ उसने क्लास के अन्तर को ही तो समझाया था । शशि थरुर ने फाइव स्टार कल्चर को ही अपना धरम और ईमान बनाया है जिसे वे स्वीकारते भी है फ़िर उनके सच बोलने की सजा क्यों दी जा रही है । उन्हें बेइजत करके फाइव स्टार होटल से निकला गया अब उन्हें आम लोगों के साथ सफर करने को कहा जा रहा है । यह सिर्फ़ इसलिए हो रहा है क्योंकि राहुल गाँधी लीडरों को बचत करने की सलाह दे रहे है । राहुल गाँधी ख़ुद ट्रेन से सफर करके इसकी पहल कर चुके है । लेकिन ट्रेन पर हुए तथाकथित पथराव के वाकये के बाद शायद ही वो दुबारा ट्रेन का सफर कर सके । सुरक्षा का सवाल है ॥ युवराज का सवाल है ,भावी प्रधानमंत्री का सवाल है । लेकिन उसी राहुल गाँधी की तमिलनाडु यात्रा में करोड़ों रूपये खर्च हो जाता है तो यह मामला नॉन इस्सू हो जाता है । राहुल की पार्टी का पैसा है राहुल गांधी उसे कैसे खर्च करता है इससे लोगों का क्या । राहुल गांधी की यात्रा पर उनकी हिफाजत के नाम पर देश की ग

राजीव गाँधी के बाद बनिता को है राहुल से आस

कालाहांडी के अम्लापाली गाँव की बनिता से मिलने ख़ुद स्वर्गीय प्रधान मंत्री राजीव गाँधी अपनी पत्नी सोनिया गाँधी के साथ पहुंचे थे । पूरी दुनिया में बनिता की ख़बर सुर्खियों में छाई हुई थी । बनिता भारत में भूख की ब्रांड एम्बेसडर बन गई थी । महज ४० रूपये में उसे बेचकर उसकी भाभी ने भूख से तड़पते हुए अपने बच्चों को बचाने की कोशिश की थी । २५ साल पहले यानि १९८५ इसवी में बनिता की यह कहानी भूख की पीड़ा की सबसे मार्मिक कहानी बनी थी । चर्चा में बनिता आई तो उसके साथ राजनेता से लेकर आला अधि़कारी भी आए ,कई समाजसेवी देशी विदेशी अनुदान से मालामाल हो गए । कालाहांडी की खूब खबरे छपी लेकिन बनिता इस चर्चा से दूर होती गई,सुविधा तो उसे कभी मिली ही नही ॥ आज उसे कोई पहचानने वाला नही है .इन २५ वर्षों में .किसीने यह जानने की भी कोशिश नही की क्या वाकई बनिता की हालत में कोई तबदीली आई ?क्या सरकारी घोषणाओं से बनिता की जिन्दगी में कोई फर्क आया ? बनिता को उसकी भाभी ने गाँव के एक निर्धन बुजुर्ग बिद्या पोधा के हाथ महज ४० रूपये में बेच डाली थी । बिद्या पोधा ख़ुद भीख मांग कर अपना गुजरा करता था सो अपने साथ बनिता का भरण पोषण उस

उत्तराधिकारी के फैसले पर कही घमासान तो कही परिवार हावी

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राजशेखर रेड्डी की दुखद मौत ने कांग्रेस के सामने एक बार फ़िर उत्तराधिकारी चुनने का जटिल सवाल छोड़ गया है । राज्य के एक कद्दावर नेता और कांग्रेस के सबसे ताकतवर मुख्या मंत्री की जगह भरना कांग्रेस आलाकमान के लिए बड़ा टास्क हो सकता है लेकिन अगर कांग्रेस अपनी परम्परा दुहराए तो यह काम मुश्किल भी नही है । वाय एस आर रेड्डी जैसे गिने चुने मुख्यमंत्री हुए है जिन्होंने अपना ख़ुद का जनाधार बनाया ख़ुद अलग लीक बनाई । आँध्रप्रदेश में राजशेखर रेड्डी के अन्तिम दर्शन के लिए उमड़ा जनशैलाव इसका सबूत है । कुछ लोगों ने यह ख़बर भी फैलाई की इस सदमे के कारण ७० लोगों ने आत्महत्या कर ली है । लोगों के बीच राजशेखर रेड्डी की इसी लोकप्रियता को आधार बनाकर आन्ध्र के रेड्डी बंधुओं ने उनके बेटे जगन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनबाने की कबायद तेज की है । जगन रेड्डी का सार्वजानिक जीवन मे कोई मिशाल भले न हो लेकिन मुख्यमंत्री के बेटे होने के कारन विवाद से जरूर नाता रहा है । लेकिन उत्तराधिकारी के नाम पर जगन रेड्डी की लाबी सबसे मजबूत है । कांग्रेस में आलाकमान के सामने आजतक उत्तराधिकारी कोई बड़ा मसला नही होता था लेकिन राहुल बाबा जब पूर

वाजपेयी जी ने पूछा, बीजेपी क्या इतनी बड़ी हो गई है ?

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी एक कविता में लिखा था । मेरे प्रभु , मुझे इतनी उचाई कभी मत देना ,गैरों को गले न लगा सकूँ ..... शायद वाजपेयी को यह एहसास हो गया था कि सत्ता पाने के बाद बीजेपी न केवल बड़ी पार्टी बन गई है बल्कि उसकी चाल ,चरित्र और चेहरा भी बदलने लगा है । कुछ अलग दिखने की बात करने वाली पार्टी विचारधारा की दल दल में ऐसी फसती जा रही है कि उसके सामने अगर सबसे बड़ी चुनौती है तो वह विचारधारा को लेकर ही है । हालत यह है कि वाजपेयी गैरों को गले लगाने की बात करते थे ,आज पार्टी अपनों से ही पल्ला छुडा रही है । पार्टी के लिए ३० साल देने वाले जसवंत सिंह एक झटके में ही चलता कर दिए गए । उमा भारती कभी पार्टी का ब्रांड एम्बेसडर हुआ करती थी एक झटके मे ही बाहर हो गई । केशुभाई पटेल को शायद विचारधारा से अलग होने की सजा मिली । कल्याण सिंह को बीजेपी में दम घुट रहा था तो थिंक टैक के रूप में मशहूर गोविन्द्चार्य को राजनीती से सन्यास लेना पड़ा । यानि गैरों की तो छोडिये अपने लोग कह सकते है कि खास लोग ही बीजेपी की उचाई को झेल नही सके । कहा गया कि बीजेपी हिंदुत्वा के अपने एजेंडे से अलग नही हो

नक्सली मस्त सरकार पस्त !

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सरकार के भारी भरकम जनसंपर्क विभाग , इन्फोर्मेशन एंड ब्राडकास्टिंग डिपार्टमेन्ट नक्सली प्रचार के सामने बेवस है । देश के दर्जनों मीडिया चैनल टी आर पी के लिए जदोजहद कर रहे हो लेकिन नक्सली प्रचार की धार इनसे कही ज्यादा है । यानि नाक्साली के मीडिया सेल कही ज्यादा सशक्त है ।छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक छोटे से गाँव मारिकोदर में एक युवक की हत्या किसीने गोली मार कर करदी थी । गोली उसके पीठ में लगी थी । जाहिर है भागने के प्रयास में लगा उस युवक को दूर से गोली मारी गई थी । लेकिन अगले दिन इलाके में यह ख़बर फैली की पुलिस ने मंगलू को गोली मार कर हत्या कर दी है । पन्द्रह साल के मंगलू से पुलिस की क्या दुश्मनी हो सकती थी यह बताने के लिए कोई तैयार नही था लेकिन हर कोई दावे के साथ कह रहा था की यह हत्या पुलिस ने ही की है । वही २ किलो मीटर दूर पुलिस का एक नाका , इन बातों से पुरी तरह अनभिज्ञ है । उसे इस घटना की कोई जानकारी नही है । और