दरवाजे पर तालिबान लेकिन कश्मीर से फौज को बाहर निकालने की साजिश

कश्मीर की वादियों में अलगाववाद की गूंज लगभग थम सी गई है । या यूँ कहें कि लोगों ने अलगाववाद की सियासत को बौना साबित कर दिया है । लेकिन एक नए चेहरे के साथ यह अलगाववाद रियासत की असेम्बली में अपनी आबाज बुलंद कर रही है । कुछ समय पहले तक दोस्त और दुश्मन में फर्क करना मुश्किल नहीं था । अलगाववादी कश्मीर में मुख्यधारा से अलग अपनी सियासत के लिए जद्दोजहद कर रहे थे । लेकिन मुख्यधारा में शामिल होकर कुछ सियासी जमतो ने अलगाववाद की एक नयी परिभाषा गढ़ी है जो शायद पहले से भी ज्यादा खतरनाक है । राज्य के हालिया असेम्बली सत्र इसका उदाहरन प्रस्तुत करता है । बांदीपोरा के एम् एल ऐ निजामुद्दीन भट ने यह कह कर सदन में सनसनी फैला दी कि आर्मी ने एक एनकाउंटर के दौरान दर्जनों घरों को मोर्टार से तबाह कर दिया सौ से ज्यादा लोगों को घरों से बाहर निकाल कर सर्दी में ठिठुरने के लिए मजबूर कर दिया । हंगामा इतना की सदस्य उसी वक्ता आर्मी को रियासत से बाहर करने पर उतारू थे । आर्म्स फाॅर्स स्पेशल पॉवर एक्ट को हटाने जैसे मुद्दे को अपना सियासी हथियार बना चुकी पीडीपी के लिए ये सुनहरा मौका था लेकिन उसकी हवा ओमर अब्दुल्लाह ने एक झटके में ही निकाल दी । सरकार ने आरोप लगाने वाले एम् एल ऐ के साथ तीन सदस्यों की टीम बनाकर बांदीपोरा भेजा । दुसरे दिन जांच टीम ने खुलासा किया कि महज एक घर को मामूली नुकसान हुआ था । लोगों को घर से निकालने की बात बिल्कुल ग़लत थी । हैरानी की बात यह है स्थानीय लोगों की सुचना पर आर्मी ने यह करवाई की थी और एक घर में छुपे लश्कर ऐ तोइबा के दो आतंकवादियों को मार गिराया था । लेकिन पीडीपी के माननीय सदस्य सदन को गुमराह कर के आर्मी को पुरी दुनिया में बदनाम करने की साजिश लगातार जारी रखे हुए है । हो सकता है कि जम्मू कश्मीर का संविधान सदन को गुमराह करने वाले माननीय सदस्य के लिए कोई करवाई का प्रावधान नही रखा हो । लेकिन इस देश ने अपनी आर्मी और उसके अनुसाशन को हमेशा सलाम किया है । क्या सियासत के दावपेंच के कारण रोज रोज आर्मी को जलील करने की कोशिश को यह मुल्क कामयाब होने देगा । आज पीडीपी सरकार से बाहर है तो आर्मी उसके निशाने पर है कल एन सी सरकार में नहीं थी तो आर्मी को निशाना बनने में उसने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ।सन २००४ में हंदवारा में सर्च ऑपरेशन पर गए मेजर रहमान पर बलात्कार के आरोप लगे । आतंकवाद का गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में आर्मी पर बलात्कार का आरोप लगा तो हुर्रियत के साथ साथ दुसरे सदस्यों ने सरकार पर इतना दवाब बनाया कि मेजर रहमान पर कोर्ट मार्शल हुआ । उन्हें सजा मिली ,आर्मी के ऑफिसर आज भी मानते है कि मेजर रहमान को इस मुल्क की सियासत ने बलि का बकरा बना दिया ।
कश्मीर का एक अखबार ग्रेटर कश्मीर अपने हर दिन के अखबार में चार से पाँच ख़बर फौज के उत्पीडन को लेकर प्रकाशित करता है । हुर्रियत के लीडरों के हवाले यह अखबार आर्मी को बदनाम करने की कोई कसर नही छोड़ता । लेकिन चौकिये नही हर महीने के लाखों रूपये का विज्ञापन उसे सरकार से मिलता है । आर एन आई के तमाम नियमों को यह अख़बार ठेंगा दिखा रहा लेकिन फ़िर भी बना हुआ है और करोड़ों रूपये सरकारी खजाने से हर साल डकार रहा है । क्या आप यकीन करेंगे भारतीय फौज को कश्मीर से निकाल बाहर करने में लगे अलगाववादियों के अख़बार के संपादक और उनके रिश्तेदारों ने इरकॉन सहित भारत सरकार के कई परियोजना का ठेका हथिया रखा है ,लेकिन निशाने पर आर्मी है ।
अफ्गाह्निस्तान से भागने के फिराक मे अमेरिका आज स्वात में तालिबान के साथ पाकिस्तान का समझौता करबा रहा है । वजह साफ़ है अमेरिका ऐसा ही समझौता अफगानिस्तान में तालिबान के साथ चाहता है , ज़मीनी लड़ाई में अमेरिका लगभग हार चुका है , यही हाल पाकिस्तान का भी है उसने तालिबान के हाथों फाटा ,स्वात सहित नॉर्थ ईस्ट फ्रोंटिर प्रोविंस तालिबा के हाथों सौप चुका है । पाकिस्तान के सद्र जरदारी का अंदेशा सच साबित हो रहा और तालिबान अपनी आहात इस्लामाबाद से लेकर पंजाब और सिंध तक दे चुका है । यानि तालिबान भारत से महज १२० किलो मीटर दूर है लेकिन कश्मीरी लीडर हमें फौज को निकाल बाहर करने के लिए समझा रहे है । तालिबान आज वहा पहुच चुका है जहाँ से भारत में सदियों से आक्रमण होता रहा है । लेकिन सरहद पर तैनात हमारे जवान के मनोबल को तोड़ने की कोशिशे भी जारी है । यकीन मानीये महज २०००० से ३०००० हजार तालिबानी आज पाकिस्तानी फौज को नोकों चने चबा रहा है । अमेरिका पाकिस्तानी फौज को कमांडों की ट्रेनिंग दे रहा है । वही अमेरिका जो ज़मीनी लडाई में कभी कामयाब नहीं हुआ है लेकिन पाकिस्तानी फौज को तालिबान के साथ लड़ने का नुस्खा दे रहा है । भारत की फौज तालिबान और पाकिस्तान की फौज से लड़ने का माद्दा रखता है । लेकिन सियासत ऐसी की कभी जीत कर भी हमारी फौज खाली वापस आती तो कभी सरहद पर महीनों आँख तरेर कर खाली घर लौट जाती है । पाकिस्तान के मामले में हमारी सरकार आज सारे फैसले अमेरिका के हाथों छोड़ चुकी है । अमेरिका एक और पाकिस्तान को खरबों डॉलर का मदद दे रहा है लेकिन हमें तनाव बढ़ने से बचने की सलाह भी दे रहा है । हर चीज को सियासी चश्में से देखने की हमने ऐसी आदत डाल lee है की एक ताकत्बर मुल्क दुनिया के सामने असहाय सा दीख रहा है ।

टिप्पणियाँ

पता नहीं हमें कब अक्ल आयेगी। कब हम किसी के लाड़ले की उसी को शिकायत करना बंद कर खुद ही सबक सिखाने की हिम्मत जुटायेंगे? कब तक सर के उपर तक आये पानी में उछल-उछल कर जान बचाने की गुहार लगाते रहेंगे? कब तक?

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