संसद को त्याग कर ही बीजेपी सरकार बना सकती है
संसद और सड़क के बीच, सांसद और सिविल सोसाइटी के बीच ,बेईमान और इमानदार के बीच लोकपाल बिल को लेकर छिड़ी बहस अपने आखिरी पड़ाव पर है .देश की संसद का यह अनोखा बिल पिछले ४० साल में ११ बार नए संशोधन के साथ संसद में आया लेकिन हर बार राजनितिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण यह बिल पास नहीं हो सका .वजह भ्रष्टाचार कभी देश के चुनावो का मुद्दा नहीं बना .वजह देश की राजनीती भ्रष्टाचार की संस्कृति को आत्मसात कर चुकी है .लेकिन इस वजह का श्रेय कमोवेश आमलोगों को भी जाता है .यह सवाल पूछा जाना लाजिमी है की पिछले २० वर्ष से सत्ता और राजनीती में अपना वर्चस्व रखने वाले लालू जी ,मुलायम सिंह ,रामविलास पासवान ,मायावती और देश के दर्जनों क्षेत्रीय पार्टिया क्या अपने उच्च आदर्शो के कारण बने हुए है या इस आदर्श के पीछे उनकी दौलत है .देश के प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों का भ्रष्टाचार से रिश्ता उतना ही पुराना है जितनी पुरानी हमारी संसदीय व्यवस्था है . लेकिन फिर भी यह भ्रष्टाचार कभी चनावी मुद्दा नहीं बन सका इसका जवाब मौजूदा लोकपाल बिल है .लोकपाल बिल में आज भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं है बल्कि बड़ी चालाकी से सरकार ने बहस को आ