सच का सामना करने के लिए क्यों नही तैयार है कश्मीरी ?

सच का सामना करने के लिए इस बार हुर्रियत कान्फेरेंस के साबिक चेयरमेन अब्दुल गनी बट सामने आये .मौका था जे के एल ऍफ़ के सेमिनार का .मौका था भारत के खिलाफ जहर उगलने का लेकिन प्रो बट का खुलासा सबको चौका दिया ,उन्होंने कहा" मारे गए हमारे हुर्रियत के लीडर वाकई मे शहीद है या फिर हमारी अंतर्विरोध के साजिश के शिकार " .हुर्रियत कान्फेरेंस के चेयरमेन ओमर फारूक और बिलाल गनी लोन की मौजदगी मे प्रो बट ने यह सवाल उठाया कि इनके पिता की हत्या किसने की थी ?उन्होंने जोर देकर कहा कि झूठ बोलने की आदत छोड़कर हम यह सच बताये कि मौलवी फारूक ,गनी लोन और प्रो अहद जैसे लीडरो की हत्या हम मे से कोई की थी इनकी हत्या किसी सुरक्षा वालों ने नही की थी .हुर्रियत लीडरो की हत्या की एक लम्बी फेहरिस्त है मौलवी मुश्ताक ,पीर हिसमुदीन ,शेख अजीज़ रफीक शाह ,माजिद डार इनकी हत्या के बारे मे यही बताया गया कि अज्ञात बन्दुक धारियों ने इनकी हत्या की थी लेकिन किसी हत्या की जांच की हिम्मत स्थानीय पुलिस नही दिखा सकी .तो क्या प्रो बट के हालिया खुलासे के बाद इन हत्यायों का राज ढूंढने के लिए किसी हुर्रियत लीडर से पूछ ताछ करेगी ?शायद नही 
१९७१ मे फजलुल हक कुरैशी खुद एक आतंकवादी तंजीम अल फ़तेह बनाकर बन्दूक की जोर पर कश्मीर को आज़ाद कराने निकले थे . बाद में उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर जे के एल ऍफ़ ने वह मोर्चा संभाल लिया था . लेकिन कश्मीरी लीडरों की यह आज़ादी पाकिस्तान को रास नहीं आई सो उसने जे के एल ऍफ़ को धकेल बाहर किया, दर्जनों हत्या के आरोपी यासीन मालिक कश्मीर का गांधी बन गए  और उनकी जगह पाकिस्तान ने हिजबुल मुजाहिद्दीन को सामने लाया . इस तरह हुर्रियत के तमाम लीडर किसी न किसी आतंकवादी तंजीम से जुड़े या फिर उनका नेतृत्वा किया ,ये अलग बात है उनकी यह गतिविधि तब तक जारी रही ,जब तक पाकिस्तान से उन्हें इसकी कीमत मिलती रही  . इस दौर मे मौलवी मिरवैज फारूक पर भी  आतंकवादियों का हमला हुआ है लेकिन ओ कौन थे या फिर इसकी शिकायत ओमर फारूक ने आज तक नही की है . मिरवैज ओमर फारूक ने न केवल अपने वालिद को खोया बल्कि उनके चाचा को आतंकवादियों ने मस्जिद मे घुस कर हत्या कर दी . मिरवैज ओमर फारूक आज तक यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाए कि यह किसका गन था . गन की सियासत से तौबा करके लौटे अब्दुल गनी लोन को किसने मारा इससे पर्दा उठाने की हिम्मत न तो बिलाल गनी लोन कर पाए न ही सज्जाद . अल बर्क नामकी आतंवादी तंजीम ने गनी लोन पर करोडो रूपये डकार लेने का आरोप लगाया था . पिछले साल सिनिओर हुर्रियत लीडर शेख अजीज की मौत एक रैली मे हो गयी .पुलिस ने  विडियो फूटेज के बिना पर यह साबित कर दिया था कि भीड़ में गोली चलाने वाले हुर्रियत के अपने ही लोग थे . लेकिन हुर्रियत के किसी लीडर मे यह हिम्मत नहीं हुई कि सच को दुनिया के सामने ला सके .सन २००० में भारत सरकार की पहल पर हिजबुल मुजाहिद्दीन बातचीत के लिए तैयार हुई तो इसका सियासी चेहरा बनकर खुद फजलुल हक कुरैशी सामने आये थे . कहा जाता है कि कुरैशी हिज्ब के ऑपरेशन चीएफ़ माजिद डार  के काफी करीबी थे . अमन का रास्ता ढूंढने निकले माजिद डार  को बाद मे गोलियों से छलनी कर दिया गया . इस तरह इस फेहरिस्त में दर्जनों ऐसे नाम है जिसने जरा भी अपनी भूमिका बदलनी की कोशिश कि उन्हें रास्ते से हटा दिया गया .लेकिन हुर्रियत के लीडर खामोश रहे .
आज हुर्रियत के कई लीडर जेल मे अपने आपको बंद रखा है . कश्मीर की इसी साइलेंट गन के कारण शब्बीर शाह वर्षों तक जेल में रहे . वे अपनी जान की कीमत पर सियासत नहीं करना चाहते थे . लेकिन कश्मीर में वे अपने को मंडेला से तुलना करते है .यानि कई अलगाववादी लीडरों को जेल ने एक सुरक्षा कबच दी है .लेकिन उनकी रिहाई के लिए कश्मीर में जब तब रैली भी निकाली जाती है .
८० के दशक मे एक दौर ऐसा भी आया जब कश्मीर के कई शहरों मे कुछ लोगों ने अपनी घडी को पाकिस्तान के घडी के हिसाब से मिला लिया था . अफगानी मुजाहिद्दीन मेजर मस्त्गुल के इस्ताक्वल मे सैकड़ो की तादाद मे लोग पहुचे थे .मशहूर जियारत चरारे शरीफ को जलाकर राख कर देने वाले मस्त्गुल की मेहमाननवाजी कई हुर्रियत के लीडरों ने भी की थी . मौलवी अब्बास अंसारी (हुर्रियत के साबिक चैयेरमन) कहते है वह एक दौर था जब किसी मुजाहिद्दीन को अपने घर में पनाह देना लोग फक्र मह्शूश करते थे ,एक दौर ऐसा भी आया जब राजौरी की रुखसाना अपनी कुल्हारी से आतंकवादी की हत्या कर रही है . हुर्रियत के लीडरों ने  दीवारों पर लिखी इबारत को पढ़ लिया है वे जानते है कि बन्दूक की पैरवी करने वाला आज कश्मीर मे कोई नहीं है . लेकिन कश्मीर में बन्दूक कायम और दायम है इस बात को वे अच्छी तरह से समझते है .
बन्दूक कश्मीर की  सियासत का हिस्सा है ,यही वजह है कि साबिक मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को हिजबुल मुजाहिद्दीन से कोई परेशानी नहीं है वे सारे गुमराह भाई है लेकिन सुर्क्षवालो की मौजूदगी उन्हें परेशां करती है .मौजूदा मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला कहते है लोगों ने बन्दूक कश्मीर के आर्थिक पॅकेज के लिए नहीं उठाया था बल्कि वे कश्मीर के मसले का हल चाहते थे . लेकिन ओमर अब्दुल्ला यह भूल जाते है बन्दूक उठाने वाले अधिकांश  वही लोग थे जिन्हें उनके खानदानी सल्तनत मे लोकतान्त्रिक अधिकार नहीं दिए गए थे 
.बन्दूक ने कश्मीर मे न केवल सियासी लीडरों की भीड़ खड़ी की बल्कि अकूत पैसे की बरसात  भी की  गाँव के झोपड़ियों में रहने वाले कई लोगों के श्रीनगर मे आलिशान बंगला देखा जा सकता है . पैसे की यह बरसात  कश्मीर मे आज भी जारी है . बन्दूक की बदोलत जिसने राजशाही सुख  सुविधा बटोरी है क्या वे कश्मीर मे बन्दूक की अहमियत को ख़तम होने देंगे?.
प्रो बट आज अलगववाद की सियासत मे अलगथलग कर दिए गए है सो वे आज सच का सामना करने के लिए तैयार है वो यह भी बताने को तैयार है कि सिर्फ गिलानी साहब के सियासी अहंकार के कारण कश्मीर मे पिछले दिनों १२० से ज्यादा माशूमो की जान गयी है तो बंद और हड़ताल के कारण कश्मीर का अरबो -खरबों का नुकसान हुआ है .कश्मीर मे हिंसा का दौर जारी है साजिश से लोग भली भाति वाकिफ है फिर भी चुप है शायद इस भ्रम मे कि कश्मीर मे आने वाला करोडो -अरबो का पैकज या फिर अरबो का विदेशी फंडिंग बंद हो जायेंगे .सरकार के सामने कारवाई करने के लिए कई सबूत है फिर भी हुकूमत चुप है .यानि सच का सामना करने के लिए आज कोई तैयार नही है? 



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