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बिहारी तो सुधर गए आप कब सुधरोगे

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   प्रख्यात अर्थशास्त्री श्री जगदीश भगवती ने पिछले दिनों   संसद भवन के सेंट्रल हाल मे सांसदों को संवोधित करते हुए कहा कि उच्च विकास दर गरीबो के लिए भी फायदेमंद हो सकता है और गरीब जनता इसका इनाम भी देती  है .बिहार मे नीतीश कुमार का आम अवाम का  भारी समर्थन इसी सन्दर्भ मे देखा जा सकता है .लेकिन उच्च विकास दर का २००४ मे जब केंद्र की एन ड़ी ऐ सरकार ने इंडिया शायनिंग के नाम से नारा दिया था तो लोगों ने इसे ख़ारिज कर दिया था .लेकिन उसी एन ड़ी ऐ के बिहार शायनिंग को लोगों ने न  केवल सराहा है बल्कि राज्य के तमाम राजनैतिक समीकरण भी बदल दिए है .लम्बे अरसे के बाद यह पहलीबार बिहार मे सत्तापक्ष २४३ सीटो मे २०६ सीटों पर जीत दर्ज की है ,तो एक दर्जन से ज्यादा सत्तापक्ष के उम्मीदवार महज हजार -दो हजार मतों के अंतर से पराजित हुए है .राजनीतिक पंडितो का विश्लेषण जारी है ,लालू -रामविलास और कांग्रेस इस शर्मनाक पराजय से स्तब्ध है ,नीतीश के गुणगान मे कसीदे  पढ़े जा रहे है लेकिन इस बहस मे  बिहारी जनमानस ने मुल्क को जो रास्ता दिखाया है उसे आज भी अनदेखा किया जा रहा है .लगातार दो बार केंद्र की सत्ता मे आने वाली कांग

ओबामा ! ओबामा दगा नही देना

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ओबामा !ओबामा, किसका ओबामा ? लेकिन फिर भी इस ओबामा की गूंज हर जगह है .एक उम्मीद हर जगह है मानो ओबामा कुछ करके जायेंगे ,कुछ देके जायेंगे .किसको ? यह नही पता .राजनीतिक पंडित कहते है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के  भारत दौरे का मकसद  अमेरिका के लिए नए बाज़ार और अवसर तलाशने से है उनका तर्क है कि अगर वे  भारत को कुछ देने आये है तो उनकी टीम मे २०० से ज्यादा अमेरिकी कंपनी के सी ई ओ क्या करने आये है ? लेकिन मेरे जैसे अज्ञानी यह उम्मीद लगा बैठे हैं  कि ओबामा भारत मे कदम रखते ही यह ऐलान करेंगे कि 'पाकिस्तान भारत के खिलाफ जेहादियों को भेजना बंद करे बरना खैर नही "यह उम्मीद हमने ओबामा के चुनावी भाषण सुनकर जगाई थी .लेकिन राष्ट्रपति बनते ही ओबामा ने ऐसा पैतरा बदला कि हमने कहना शुरू कर दिया दोस्त दोस्त ना रहा ..... ओबामा राष्ट्रपति बनने से पहले यह अक्सर कहा करते थे पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद की समीक्षा होगी ,उनका मानना था अमेरिका के लाखों करोडो डालर का इस्तेमाल पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी अभियानों मे लगता है .लेकिन आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर अबतक सबसे ज्यादा फंड ओबामा ने ही पाकिस्ता

आज़ाद कश्मीर मे गिलानी साहब परोसेंगे शराब

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"राज करेगा गिलानी " हम क्या चाहते आज़ादी जैसे नारों के बीच दिल्ली के एल टी जी सभागार आज़ाद कश्मीर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रहा था लेकिन गुस्साए कश्मीरी पंडित के  नौजवान  बन्दे मातरम का नारा लगाकर आज़ादी के इस महान उत्सव का रंग फीका कर रहा था .आज़ादी द ओनली वे के इस महान जलसे मे सैयद अली शाह गिलानी   अपने आज़ाद कश्मीर मे न्याय और कानून व्यवस्था पर कुछ इस तरह प्रकाश डाल रहे थे "आजाद कश्मीर मे बहुसंख्यक मुसलमानों को शराब पीने की इजाजत नही होगी यानि वे शरियत के कानून से  बंधे होंगे जबकि दुसरे हिन्दू ,सिख और बौध तबके को शराब पीने की पूरी आज़ादी होगी .वे जहाँ और जब चाहे शराब पी सकते है और कानून इतना सख्त होगा कि अगर धोके मे भी कोई मुसलमान किसी के शराब की बोतल तोड़ेगा तो उसे इसका हर्जाना देना होगा ." .गिलानी साहब के इस आज़ादी को समर्थन करने अरुंधती  राय के आलावा देश के कई नामी अलगाववादी नेता इस समारोह मे जमा हुए थे .खालिस्तान के समर्थक से लेकर माओवाद के समर्थक ,मिज़ो विद्रोही से लेकर नागा विद्रोही हर ने भारतीय अस्मिता को रौंदते हुए भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सवाल उठा

कश्मीर का सच : ओमर अब्दुल्ला

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रियासत मे मुख्यमंत्री पद की कमान संभाले अभी ओमर अब्दुल्ला को दो  साल पुरे नही हुए है  लेकिन ओमर अब्दुल्ला यह बात मान चुके है कि वे कश्मीर मे सबसे ज्यादा निक्कमा मुख्यमंत्री साबित होने वाले है .पिछले महीने एक इंटरव्यू मे उन्होंने  माना था कि " सियासी तौर वे  कोई चमत्कार दिखाने के लायक नही है ना ही वे अपने आपको लोगों के बीच बेच पाए है ".यानि शेख अब्दुल्ला की तीसरी पीढ़ी को कश्मीर मे तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश की गयी लेकिन यह दाव पूरी तरह से खाली गया .पिछले विधान सभा चुनाव मे नेशनल कान्फेरेंस सबसे बड़ी पार्टी के रूप मे सामने आई लेकिन सरकार बनाने से कोसो दूर थी .कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की कबायद तेज हुई लेकिन कांग्रेस की तरफ से साफ़ कहा गया फारूक पिटे हुए मोहरे है सिर्फ ओमर अब्दुल्ला को आजमाया जा सकता है .हालत यह है कि जो काम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद नही कर सका .वादी मे सरगर्म अलगाववादी संगठन नही कर सके वह काम ओमर अब्दुल्ला अपने चंद महीनो के शासन मे कर दिखाया .कश्मीर का एक आध इलाका नही बल्कि वादी के दस जिले लगातार चार महीनो से अस्तव्यस्त रहे १०० से ज्

नक्सली समस्या की जड़ दिल्ली है

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नक्सल आतंक के खिलाफ पिछले साल  से जोरदार हमले की तैयारी थी . ऑपरेशन ग्रीन हंट की तैयारी मीडिया के द्वारा छन छन कर लोगों के बीच आ रही थी . नगारे बज रहे थे मानो फाॅर्स बस्तर के जंगल में घुसेंगे और गणपति से लेकर कोटेश्वर राव तक तमाम आला नक्सली लीडरों को कान पकड़ कर लोगों के बीच ले आयेंगे . लेकिन भारत सरकार यह अबतक यह नही तय कर पायी की इस जंग की कमान किसके हाथ मे होगी ?.अभियान के कप्तान गृहमंत्री चिदंबरम को पार्टी और पार्टी से बाहर लगातार नशिहते मिल रही थी कि नक्सली पराये नही है वे पार्टी के लिए पहले भी हितकर रहे है और उनका उपयोग कभी भी चुनाव मे हो सकता है .यही वजह है कि  चिदम्बरम साहब नक्सल के खिलाफ जंग भी लड़ना चाहते है लेकिन सामने नही  आना चाहते .वो राज्य सरकारों को मदद दे रहे, वे ४० से ५० बटालियन सी आर पी ऍफ़  नक्सल प्रभावित राज्यों को भेज रहे .लेकिन लड़ाई की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ रहे है .लेकिन राज्य सरकार चाहती है कि यह लड़ाई चिदम्बरम खुद लड़े.  यह देश का सवाल नही है वोट का सवाल है .बेचारा नीतीश कुमार कल तक नक्सल के खिलाफ सख्त बयानवाजी के कारण चिदंबरम को नशिहत दे रहे थे .वे

तो क्या कश्मीर मसले का हल सिर्फ जनमतसंग्रह है ?

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गृह मंत्री पी चिदम्बरम शायद कश्मीर को लेकर ज्यादा चिंतित है .उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि २००४ मे जो नौजवान यहाँ आई आई टी और आई आई एम् के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे वही नौजवान आज कश्मीर की आज़ादी की मांग  कर रहे है .यह एक बड़ा सवाल है कि पिछले वर्षों मे जिन इलाकों मे लोगों ने भारी तादाद मे शिरकत करके भारत के लोकतंत्र मे अपनी आस्था जताई थी आज उन इलाकों मे लोगों का भरोसा अलगाववादियों ने जीत लिया है .कश्मीर पिछले ६० दिनों से बंद ,हड़ताल और कर्फु की चपेट मे पूरी तरह अस्त व्यस्त है लेकिन कही से उजाले की किरण नहीं दिखाई दे रही है . पिछले जून महीने से अबतक कश्मीर मे ४० से ज्यादा नौजवान मारे गए है .सैकड़ो की तादाद मे लोग जख्मी हुए है . सरकार की ओर से यह दलील दी जा रही है १२०० से ज्यादा सुरक्षाबल घायल हुए है .यानि सरकार यह समझाने मे लगी है कि सुरक्षाबलों ने जब भी फायर खोला है वह उनकी मजबूरी रही है .सरकार की यह भी दलील है कि इन पत्थरबाजों के साथ आतंकवादी मिले हुए है .पत्थरबाजी की यह वारदात पाकिस्तान के इशारे पर हो रही है .अगर यह सब पाकिस्तान के इशारे पर हो रहा है तो फिर गृह मंत्री चिदम्बरम का य

ओमर अब्दुल्ला की नाकामी बनी देश की परेशानी

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कश्मीर आज जल रहा है .अलगाववाद एक बार फिर कश्मीर मे हावी है .आज वहां आतंकवादियों की पकड़ ढीली हो चुकी है लेकिन अलगाववाद ने फिनिक्स की तरह फिर से समाज मे अपना आधार बना लिया है लेकिन सवाल यह उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है .पिछले दिनों एक के बाद एक हुई घटना मे १० से ज्यादा बच्चे और नौजवान मारे गए है .यानि बन्दूक वरदारों की जगह पत्थर वाजों ने ले ली है .पत्थरवाजों के हाथों पिटते जम्मू कश्मीर पुलिस के जवानों देखकर यह कहा जा सकता है पत्थर वाजों को लेकर सरकार मे अभी यह तय होना बांकी है इन हुडदंगियों से कैसे निपटे .जब    कोई नौजवान सी आर पी ऍफ़ की करवाई मे मारा जाता है तो रियासत की हुकूमत यह दावा करती है कि इस फाॅर्स पर उनका कोई कंट्रोल नहीं है .यानी कश्मीर मे सी आर पी ऍफ़ बेलगाम है .जबकि सच यह है कि सी आर पी ऍफ़ बगैर राज्य पुलिस की इजाज़त के एक कदम भी मूव नहीं कर सकता .लेकिन सियासत ऐसी की सरकार कभी इन पत्थर वाजों को भारत दर्शन टूर के लिए प्रोग्राम बनाती है तो कभी इन पत्थर वाजों को पुचकारने के लिए आर्थिक पाकेज का ऐलान करती है .लेकिन पिछले वर्षों मे अलगाववाद की सियासत को इन पत्थर वाजों ने हैज

नीतीश का सेकुलरिज्म या लालू का खौफ

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बिहार एक बार फ़िर चर्चा में है । चर्चा के कई कारण है . ६ महीने बाद वहा चुनाव होने वाले है लेकिन असली चर्चा का विषय सत्ता समीकरण को लेकर जोड़ -तोड़ है. नॅशनल मिडिया मे खबर के लिए कुछ लोग आदर्श है जिसमे नरेन्द्र भाई मोदी का नाम सबसे ऊपर है .सो राष्ट्रीय मिडिया मे प्राइम टाइम झटकने के लिए नीतीश ने नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाया है .कोशी  बाढ़ पीड़ित  सहायता राशि गुजरात को लौटकर नीतीश ने  अपने सेकुलर छवि पर बने दाग को लगभग धो लिया है .वह पैसा गुजरात के लोगों का था लेकिन नीतीश ने उसे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लौटा दिया है .वह पैसा कोशी के बाढ़ पीड़ितों के नाम था लेकिन वह कर्ज नीतीश जी ने खुद उतरा है .हो सकता है कि आने वाले समय मे गुजरात के लोग और लम्बा फेहरिस्त दे ,तो नीतीश जी पाई पाई चुकाने के लिए केंद्र से कुछ उधार भी लें .हो सकता है इस बहाने वे कांग्रेस के कुछ और करीब आयें .जहाँ तक मुझे याद है गुजरात से करोड़ों रूपये की राहत सामग्री बाढ़ पीड़ितों को लिए भेजी गयी थी .लेकिन सवाल इमेज का है सवाल वोट का है तो नीतीश जी अपने को सेकुलर मनवाने के लिए कुछ भी कर सकते है .हो सकता है कि अगर गुजरात से

ममता दीदी और माओवादी दादा की सियासत मे फसी सरकार

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पश्चिम बंगाल के मिदनापुर इलाके मे इस बार मओवादियो के निशाने पर मुंबई -हावरा एक्सप्रेस ट्रेन आई .जिसके चपेट मे १०० से ज्यादा लोग बे मौत मारे गए .पश्चिम बंगाल पुलिस का दाबा है की नक्सली समर्थित पी सी पी ऐ यानि पीपुल्स कमिटी अगेंस्ट पुलिस अट्रोसिटी के दस्ते का यह कुकृत्य है .यानी वह वही कमिटी है जिसने मिदनापुर के तीन जिलों मे ममता बनर्जी का आधार मजबूत किया है .माता दीदी की ट्रेन निशाने पर है लेकिन मारे जा रहे है आम लोग .भला दीदी के सेहत पर क्या फर्क पड़ता है ?.लेकिन पश्चिम बंगाल के मुनिसिपल चुनाव ने ममता दीदी की मुश्किलें बढा दी है .सो ममता कह रही है कि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है यानि इस हादसे की जिम्मेदारी राज्य सरकार को लेनी चाहिए .जब की राज्य सरकार सारा दोष ममता के सर डाल रही है और नाक्साली चुप चाप तमाशा देख रहे है .राजधानी एक्सप्रेस से लेकर कई गाड़िया मिदनापुर इलाके मे नक्सालियों के सोफ्ट टार्गेट बने है लेकिन हर बार ममता दीदी ख़ामोशी ही बरती है .तो क्या नक्सलियों ने अपनी रणनीति मे परिवर्तन लाया है .क्या बड़े हमले करके नक्सली राष्ट्रीय स्तर पर इसकी धमक बनाना चाहते ह

इन जातिवादी नेताओं से नक्सली क्या बुरे हैं

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देश में नक्सली हमलों का कहर जारी है .लेकिन सरकार यह तय नहीं कर पायी है कि नक्सली देश के दुश्मन है या दोस्त .देश के प्रधान मंत्री कहते है कि नक्सली आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है .लेकिन गृह मंत्री नक्सली के खिलाफ असफल अभियान छेड़ने के  वाबजूद यह कहने से कतराते है कि नक्सली देश का दुश्मन है .यानी यह तय करने में असमर्थ है कि इस मुल्क का, इस मुल्क के प्रगति का कौन दुश्मन है कौन दोस्त? .नक्सली बन्दूक के जोर पर व्यवस्था परिवर्तन की बात करते है .यानी देश के पिछड़े लोगों को ढाल बनाकर वो शासन पर कब्ज़ा करने की कोशिश मे लगे है .कही उनके समर्थन मे तो कही उनके विरोध में राजनीती का माहोल भी गर्म है .यानी ये बयान राजनीति में नफा नुकसान के आधार पर दिया जा रहा है .लेकिन जो लोग  सत्ता पर अपनी प्रभुसत्ता बनाये रखने के लिए देश को टुकड़े टुकड़े मे बाटने की कोशिश में लगे है वे हमारे राज  नेता के रूप मे स्थापित है .और हम यह पहचानने मे आज भी धोखा खा रहे है कि ये इस देश की प्रगति के दोस्त है या दुश्मन .यानी दुश्मन को पहचानने मे सरकार भी धोखा खा रही है और हम भी . बाबा भीमराव आंबेडकर ने कहा था मुझे यह बात

कश्मीर: पत्थर युग मे लौटने की कबायद तेज

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घर से ऑफिस निकले शफीक अहमद शेख को नहीं पता था कि अगले चौक पर कुछ पत्थर वाले उनका इंतजार कर रहे है .जैसे ही उनकी मिनी बस मगरमाल बाग पहुची एक पत्थर सीधे बस की ओर उछाला गया .ओर सीधे चोट शेख के सर पर लगी .कुछ ही पल में शेख सदा सदा के लिए खामोश हो गए . बारामुला के अब्दुल अजीज अपने ११ दिन के बच्चा इरफ़ान को हस्पताल ले जा रहे थे लेकिन उन्हें हस्पताल नहीं जाने दिया गया एक उत्साही नौजवान ने एक पत्थर उछाला और पल भर में वह दिन का बच्चा दम तोड़ गया .यानी पत्थर के खेल के शौकीन कश्मीर का नौजवान पत्थरों से लोगों की जान ले रहे है लेकिन सियासत ऐसी कि हुकूमत पत्थर वाजों को रोक नहीं पा रही है और सियासी नेता इसे नौजवानों की हतासा मान रही है .यानि पत्थर युग में पहुच चूका कश्मीर एक नयी संस्कृति को अपना लिया है . हर जुम्मे के दिन पत्थर वाजी का यह आम नज़ारा होता है .श्रीनगर के जामा मस्जिद के इलाके ,पुराने बारामुला और सोपोर मे अचानक हर शुक्रवार को चौराहे पर एक महफ़िल सजाई जाती है जिसमे उत्साही नौजवानों की टोली हाथ मे पत्थर लिए पुलिस कर्मी को आगे बढ़ने के उकसाती है .इनका नारा होता है जीवे जीवे पाकिस्तान ,हम क्या

भारत का नक्सली और इंडिया का आई पी एल

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झारखण्ड के पूर्व विधानसभा स्पीकर इन्दर सिंह नामधारी ने कभी राज्य की सरकार को यह सुझाव दिया था कि एक साल तक झारखण्ड मे सारे विकास के काम रोक दिए जाय .सरकार और मीडिया मे इसका माखौल उड़ाया गया था . नामधारी जी की यह दलील थी की आदिवासी इलाके में विकास के नाम पर जो पैसे का बंदर बाट हो रहा है उसमे सबसे ज्यादा फायदा नक्सालियों को ही हो रहा है .सरकार की हर योजना में नक्सलियों का ३० फिसद देना तय तय है  .यानि नक्सली आन्दोलन को बढ़ने से रोकना है तो तो उसके फंडिंग के इस सुलभ तरीके को रोकने होंगे .सरकारी पैसा ,सरकारी हथियार लेकिन नक्सलियों के निशाने पर वही सरकार .यानी पैसे उगाहने के लिए नक्सलियों ने कमोवेश वही प्रबंध किया है जो तरीका आई पी एल के धुरंधरो ने राजनेताओ के साथ मिलकर किया है . कभी आई पी एल के बारे मे गृहमंत्री चिदम्बरम ने कहा था कि कुछ चलाक लोगों ने क्रिकेट को मनोरंजन के चासनी मे डाल कर इसे एक फ़ॉर्मूला बना दिया है .लेकिन नक्सलियों के कुसल प्रबंधन को समझने मे वे अब तक नाकाम रहे है . दंतेवाडा नक्सली हमले से आह़त गृह मंत्री ने एक बार फिर नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुल

गृह मंत्री चिदम्बरम की माया कांग्रेस और बीजेपी पर भारी

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"बक स्टॉप आट माय डेस्क " यह उस गृह मंत्रालय के लीडर का बयान था जहाँ यह कभी रिवायत नहीं थी .छत्तीसगढ़ के दंदेवाडा से भी भयानक हमले इस मुल्क पर हुए है .आतंकवादी हमले मे एक एक दिन में २०० से ज्यादा लोग मारे गए है लेकिन गृह मंत्री  कभी भी इसकी जिम्मेदारी लेने आगे नहीं आये .कभी कहा गया हर जगह सुरक्षाबल मुस्तैद करना संभव नहीं है  . तो कभी कहा गया राज्य सरकारों या फिर आला पुलिस ऑफिसर को ख़ुफ़िया जानकारी पहले ही दे दी गयी थी .यानि हर बार पूर्वर्ती गृह मंत्री ने अपने को बेदाग़ साबित किया .लेकिन ऐसा क्या हो गया कि ७६ सी आर पी ऍफ़ के जवानों की न्रिशंश मौत ने गृह मंत्री को हिला दिया था ?.ऐसा क्या हो गया कि हर बात पर गृह मंत्री का इस्तीफा मांगने वाला विपक्ष गृह मंत्री के साथ मजबूती से खड़ा था ?.दंतेवाडा के नाक्साली हमले के ठीक चार दिन पहले गृह मंत्री चिदम्बरम पशिम बंगाल के मुख्या मंत्री को नशिहत दे आये थे और उन्हें जिम्मेदारी दुसरे पर नहीं थोपने की सलाह दे रहे  थे .दंतेवाडा के इस हमले के बाद गृह मंत्री ऐसी ही नशिहत रमण सिंह को भी दे सकते थे और सी आर पी ऍफ़ की मौत की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर थ

सुरक्षाबलों की मौत पर बंद करो ये घडियाली आंसू

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६ अप्रैल २०१०, दंतेवाडा . भारत के आतंक विरोधी अभियान का  कला दिवस .एक नहीं दो नहीं ७६ से ज्यादा सुरक्षा वल मौत के घाट उतार दिए गए .नक्सली आतंकियों द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा हमला है . ४ अप्रैल २०१० ,कोरापुट ११ जवान नक्सली हमले के शिकार हुए .१५ अप्रैल २०१० मिदनापुर के एक कैम्प पर नाक्सालियो ने हमला करके २४ जवानों को शहीद कर दिया .इस साल के कुछ बड़े हमले की यह सूचि है .यकीन मानिये अबतक नक्सल विरोधी अभियान मे २००० से ज्यादा जवानों की मौत हो चुकी है .लेकिन भारत सरकार की यह जिद है कि यह लड़ाई राज्य सरकारे लड़ेगी केंद्र सिर्फ उन्हें सहायता देगा .सियासत ऐसी कि नक्सल के खिलाफ अभियान को राज्यों मे ऑपरेशन ग्रीन हंट का नाम दिया जा रहा है लेकिन हमारे गृह मंत्री ऐसे किसी ग्रीन हंट ऑपरेशन से इनकार करते है .दंतेवाडा के मुकरना जंगल मे नाक्सालियो ने बड़ी ही बेरहमी से ७६ जवानों को भून डाला और सुरक्षाबल नाक्सालियो पर एक गोली भी नहीं चला पाए .यानि नक्सालियों के अम्बुश का तोड़ अभी सी आर पी ऍफ़ के पास नहीं है .नक्सली के हर अम्बुश मे सी आर पी ऍफ़ के जवान फसते है .१०० -२०० के नक्सली गुरिल्ला की फौज उनका आसान