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पाकिस्तान को दिया कश्मीरियों ने सबूत

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१९४८ में पाकिस्तानी आर्मी ने कवालियों के भेष में कश्मीर पर अचानक आक्रमण कर दिया था । असमंजस मे पड़ा कश्मीर का महराजा ने भारत से मदद मांगी । भारत की फौज ने पाकिस्तानी फौज को खदेड़ बहार किया । लेकिन तब भी पाकिस्तान ने दुनिया से सबूत माँगा था और फौजी करवाई से साफ़ इंकार कर गया था । कारगिल आक्रमण के दौरान पाकिस्तानी फौज ने आतंकवादियों का साथ लेकर एक फ़िर वही रणनीति अपनाई । भारत ने कहा यह क्या कर रहे हो ? पाकिस्तान ने एक बार फ़िर सबूत माँगा । संसद हमले के दौरान पाकिस्तान ने फ़िर भारत से सबूत पेश करने को कहा .... मुंबई हमले को अंजाम देने की साजिश का चिटठा भारत ने पुरी दुनिया के सामने रख दिया है लेकिन पाकिस्तान सबूत की पुरानी जीद पर कायम है । भारत -पाकिस्तान के बीच अबतक तीन जंग हो चुके हैं और हर बार पाकिस्तान ने मुहं की खायी है लेकिन हर बार भारत को खाली हाथ ही लौटना पड़ा है । कह सकते हैं कि भारतीय सेना के तमाम कामयाबी, राजीनीतिक फैसले के कारण बौनी साबित होती रही है । लेकिन पहली बार कश्मीरियों ने जो पुख्ता सबूत पाकिस्तान को दिया है वह पुरी दुनिया के लिए एक आइना हो सकता है । कश्मीर बनेगा पाकिस्

अंतुले का बयान आई एस आई के मीडिया मैनेजमेंट का एक हिस्सा है या कुछ और ..

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भारत सरकार के एक कद्दाबर मंत्री ऐ आर अंतुले ने यह कह कर सनसनी फैलाने की कोशिश की कि महाराष्ट्र के ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे की मौत पाकिस्तानी आतंकवादिओं की गोली से नहीं हुई है। उनकी यह दलील है कि हेमंत करकरे एक महत्वपूर्ण केस की जांच कर रहे थे ,इसलिए उनकी मौत की वजह कोई दूसरा संगठन भी हो सकता है । यह बयान ठीक उसी तरह से आया जिस तरह अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद यह अफवाह फैलाई गई कि इन धमाकों को अंजाम अलकायदा को बदनाम करने के लिए सी आई ऐ और मूसाद ने दिया था । अरब देशों के अलावा तमाम muslim देशों में यह तर्क आज भी दिया जा रहा है की इन हमलों में एक भी यहूदी शिकार नहीं हुए थे । अंतुले के हालिया बयान को पाकिस्तान ने हाथों हाथ लिया और पुरी दुनिया में यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि मुंबई में हुए आतंकी हमला स्थानीय संगठनों की साजिश है । खास बात यह है कि यह बयान भारत सरकार के एक मंत्री की ओर से आया है तो इसके समर्थन में कई muslim संगठनों ने भी अपना सुर मिलाया है । जाहिर है मुसलमानों के एक तबके में मिले अंतुले के समर्थन से कांग्रेस पार्टी उहा पोह की स्थिति में है तो तथाकथि

आडवानी जी को है एक मुद्दे की तलाश

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भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री के पद के उम्मीदवार लाल कृषण आडवानी को हालिया असेम्बली चुनाव ने जोर का झटका दिया है । प्रधानमंत्री बनने की अपने तैयारी का टेलर आडवानी जी ने इन चुनावों मे दिखाया था । लेकिन वोटरों ने उनके तमाम मुद्दे को फ्लॉप साबित कर दिया है । आसमान छूती महगाई ,आर्थिक मंदी , बढती बेरोजगारी ,नौकरियों से हो रही लगातार छटनी , ऊपर से आतंकवाद फ़िर भी कांग्रेस सत्ता में वापस आ रही है या फ़िर अपनी सत्ता बरक़रार रख रही है तो जाहिर है यह कहा जाएगा की लोगों को बताने के लिए बीजेपी के पास कुछ भी नही है । अगर बीजेपी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का हवाला देती है तो यह उन्हें याद कराने की जरूरत है कि इसका श्रेय आडवानी जी बीजेपी को नही जाता बल्कि यह श्रेय शिव राज सिंह चौहान और रमन सिंह को जाता है । दोनों नेताओं की शालीन छबि और कर्मठता उन्हें सत्ता में दुबारा स्थापित करती है । देल्ही में बीजेपी के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार विजय कुमार मल्होत्रा का मुद्दा आतंकवाद था , उन्होंने ऐलान कर रखा था की उनके मुख्यमंत्री बनने के एक सप्ताह के अन्दर जैश ऐ मोहम्मद के आतंकवादी अफज़ल गुरु को फासी की सजा बहा

आतंकवाद को हराने के लिए मुसलमानों के भरोसे को जितना होगा ...

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पिछले एक साल में ११ बड़े धमाके हुए हैं जिसमे हमने १००० से ज्यादा अपने अजीजों को खोया है । २००० से ज्यादा लोग आज भी आतंक के दंश को झेल रहे हैं । हर हमले के बाद हमरा नेतृत्वा हमें दिलासा देता है बस ! आतंकियों की कोशिशों को अब कामयाब नही होने दिया जाएगा ,प्रधानमंत्री से लेकर आला मंत्री तक हमें आश्वस्त कर जाते हैं । लेकिन फ़िर एक हमला सामने आ जाता है और फ़िर हमारे सौ दो सो लोग मारे जाते हैं । एक बार फ़िर वही आश्वासन ,धीरज रखने की अपील .... आज दुनिया के तमाम नामी अख़बारों ने और सुरक्षा विशेषज्ञों ने हमें एक नाकारा देश और अक्षम नेतृत्वा के विशेषण से नवाजा है । देश और दुनिया में हो रही आलोचना से परेशान हमारी हुकूमत ने सीधे पाकिस्तान की हुकूमत से आई एस आई के चीफ को तलब किया। देश के अख़बारों में इसकी सुर्खियाँ बनी मानो पाकिस्तान ने अपनी गलती मान ली हो और आई एस आई को भारत को सुपुर्द कर दिया हो । लेकिन दुसरे दिन ही पाकिस्तान ने आई एस आई के चीफ को भेजने की बात को नकार दिया ।यानी ठीक उसी तरह जैसे पार्लियामेन्ट हमले के बाद हमारी हुकूमत ने ऑपरेशन पराक्रम का ऐलान कर फौज को पाकिस्तान के सरहद पर तैनात कर

हिंदू आतंकवाद और सेकुलरिस्म यानि खौफ की सियासत

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एक ही झटके में मालेगाँव धमाके के आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ,कर्नल पुरोहित और दूसरे आरोपियों को समझौता ब्लास्ट ,अजमेर शरीफ ब्लास्ट ,और देश में दूसरे धमाके का सरगना करार दिया जा रहा है । ठीक उसी तरह जब देश के अन्य भागों में सीरियल ब्लास्ट का सिलसिला जारी रहा और हर बार पुलिस मास्टर मैयंड को पकड़ लेने की दावा करती रही । ध्यान रहे कि पिछले दो वर्षों में २४ बड़े धमाके हुए हैं जिनमे कई मामले में अभीतक कोई गिरफ्तारी भी नही हुई है , तो कई मामले मे पुलिस चार्जशीट तक दायर नही कर सकी है , तो कई आरोपी सबूत के अभाव में कोर्ट से बरी कर दिए गए हैं । ये एक झलक है राज्य के खास पुलिस दस्ते और सीबीआई के इन्वेस्टीगेशन का । लेकिन ये जाँच प्रक्रिया सियासी पार्टियों के लिए मुद्दे जरूर बनते रहे हैं । मुंबई पुलिस और उसके ऐ टी एस ने इस बार एक मुद्दा बनाया है देश के सेकुलरिस्ट पार्टियों के लिए । यानि अभिनव भारत , विश्व हिंदू परिषद् ,बजरंग दल , आर एस एस और बीजेपी तथाकथित सेकुलर पार्टियों के निशाने पर है । मुंबई पुलिस अभीतक दस आरोपियों को गिरफ्तार किया है लेकिन हिंदू आतंकवाद का मामला राजधानी दिल्ली से निकलकर ब्रिटि

इस बार हमारे जैसे पप्पू भी वोट करेंगे

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पिछले एक दसक से देश की बदली सियासत पर अगर नज़र डालें तो आप यह दावे के साथ कह सकते हैं कि सरकार बनाने का जनादेश जनता ने न तो एक सियासी पार्टी को दिया न ही किसी खास व्यक्ति को । लेकिन फ़िर भी सरकार बन रही है सत्ता का खेल हो रहा है। ये अलग बात है कि इन तमाम प्रक्रियायों में जनता कहीं नहीं है । देवेगौडा से लेकर गुजराल तक वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह तक इन्हें प्रधान मंत्री बनाने में क्या किसी मतदाता का योगदान है तो यह बात पक्की तौर पर कही जा सकती है कि इसमे जनता का, जनता के लिए ,जनता दुआरा शासन की अवधारणा बेमानी साबित होती है । एच ड़ी देवेगौडा ,आई के गुजराल प्रधानमंत्री कैसे बने ये बात बेहतर लालू प्रसाद यादव ही बता सकते हैं । अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने में २३ राजनितिक दलों का योगदान था । सत्ता से बीजेपी को बाहर रखने के लिए लेफ्ट और कांग्रेस ने २४ दलों का यु पी ऐ बनाया और मैडम सोनिया गाँधी को सत्ता सँभालने का आग्रह किया । लेकिन सोनिया जी ने त्याग का बेमिशाल परिचय देते हुए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया । मनमोहन सिंह भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने मे

हिंदू आतंकवाद, इस्लामिक आतंकवाद और देश की सियासत

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पिछले छः महीने में ६ सिरिअल बोम्ब ब्लास्ट हुए है जिसमे २५० से ज्यादा लोग मारे गए हैं । अगर मौजूदा केन्द्र सरकार की बात करे तो इनकी एक बड़ी उपलब्धी में यह शुमार किया जा सकता है कि पिछले वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों में ७१ बोम्ब ब्लास्ट हुए हैं जिसमे ३५०० से ज्यादा लोग मारे गए है । घायल लोगों की यह तादाद ५००० के ऊपर है । इन तमाम धमाकों की साजिश की पड़ताल चल रही है , लेकिन किसी भी मामले में पुलिस को कामयाबी नहीं मिली है। कुछ मामलों में सरगना की गिरफ्तारी का दावा जरूर किया गया है लेकिन कई मामले में पुलिस हाथ मलते ही नज़र आई है । आतंकवाद से लड़ने की यह है हमारी सरकार की प्रतिबधता । हमें कभी इंडियन मुजाहिदीन तो कभी लश्कर तो कभी हुजी तो कभी हिज्ब के हाथ होने की बात बताई जाती है । लेकिन हर बार नो दिन चले ढाई कोस ही साबित हुआ है । इन दिनों एक नया संगठन अभिनव भारत का नाम लिया जा रहा है । मालेगोवं में बोम्ब ब्लास्ट के सिलसिले प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित कई लोग पकड़े जा चुके है । लेकिन सेना के एक बड़े अधिकारी श्रीकांत पुरोहित की गिरफ्तारी ने एक नई साजिश की ओर इशारा किया है । कह सकते हैं कि भारत में

क्या राहुल राज पागल था या फ़िर कुछ और ...

[Photo] बस में , मेट्रो में ,कौफी हाउस में या यूँ कहें कि जहां भी बिहार के लोग मिलते हैं मुंबई पुलिस का हालिया एनकाउंटर खास चर्चा में है । क्या राहुल राज पागल था , क्या बिहार की स्मिता के लिए राहुल शहीद हो गया , क्या बिहार का एक भावुक नौजवान वह सब कर गया, जो आज तक किसीने नहीं किया था ? इस तरह के ढेरो सवाल लोगों के मन में उमड़ रहें है । ठीक दूसरे दिन एक दूसरे एनकाउंटर में उसी महाराष्ट्र में पब्लिक के एनकाउंटर में गोरखपुर का एक मजदूर मारा जाता है । धर्मदेव राय मजदूरी करके वापस लौट रहा था कुछ तथाकथित मराठी मानुस ने उसकी जान ले ली । लोग एक दूसरे की जान लेने पर उतारू है मगर क्यों ? मुंबई पुलिस का दावा है कि पटना से आया राहुल राज ने एक बस को हैजक कर लिया था और वह राज ठाकरे को मारने आया था । राज्य के गृह मंत्री अपनी पुलिस की पीठ थपथपा रहें हैं ,शिव सेना बिहारी अंदाज में उसे मार गिराने के लिए मुंबई पुलिस को बधाई देती है ..और केन्द्र की सरकार महाराष्ट्र की सरकार से रिपोर्ट मांगने की बात करके इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ लेती है । एक देश ,एक नागरिकता ,एक पहचान की बात सियासत के पैरों तले रौं

कौन है मुंबई का असली ठाकरे

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पिछले दिनों राहुल गाँधी ने यह खुलासा किया कि वे आज जहाँ हैं वह सिर्फ़ इसलिए कि वे नेहरू गाँधी परिवार से हैं । यानि वंशवाद कि राजनीती ने उत्तर से दक्षिण तक अपना असर कायम कर रखा है । राज ठाकरे इसी वंशवाद कि उपज हैं । शिवाजी महराज का दायरा महाराष्ट्र तक सिमित करके बाला साहब ठाकरे ने शिव सेना को एक राजनितिक कद दिलवाया वहीँ महाराष्ट्र में एक ताकतवर सख्शियत के रूप में उभरे । जाहिर है सीनियर ठाकरे को बाला साहब बनवाने में राज ठाकरे का अहम् योगदान था । बाला साहब का यह भतीजा नौजवानों के बीच काफी लोकप्रिय था , और शिव सेना के धरने प्रदर्शन की सारी जिम्मेदारी राज की ही होती थी । लेकिन शिव सेना का शेर ने संन्यास की ओर रूख करने की सोची तो अचानक पुत्र मोह से ग्रसित हो गया नतीजतन राज ठाकरे पीछे धकेल दिए गए और उद्धव ठाकर ने शिव सेना के नेतृत्वा को अपने हाथ में ले लिया । राज ठाकरे के लिए यह एक बड़ी चुनोती थी कि वे शिव सेना और बाला साहेब से अलग अपनी राजनितिक जमीन तैयार करे । जाहिर है राज ठाकरे ने भी वही रणनीति अपनाई जो कभी बाला साहब ने अपनाई थी ॥ ७० के दसक में बाला साहब ने दक्षिण भारतियों को मुंबई से

कश्मीर :पैकेज नहीं सियासी पहल की जरूरत है

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प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का कश्मीर दौरा कई मामले में शानदार उपलब्धि के तौर पर शुमार किया जा सकता है ।११ हजार करोड़ की लगत से बनी ४०० मेगावाट की बिजली परियोजना का शुभारम्भ प्रधानमंत्री ने अपने इस दौरे में किया है। जिससे राज्य को ९०० करोड़ रूपये की अतरिक्त आमदनी हो सकती है । कश्मीर में रेल जिसे विज्ञान का चमत्कार ही कहा जा सकता है , आज यह रेल सिटी बजाती हुई वादी के ग्रामीण अंचलों में नई उम्मीद जगाई है । कंट्रोल लाइन के दोनों ओउर आवाजाही के साथ साथ कारोबार को आसान बना दिया गया है । रियासत के विकास के लिए ६७ परियोजना पर काम चल रहे है जिस पर २४ हजार करोड़ रूपये खर्च किए जा रहे हैं । श्रीनगर के मुनिसिपल से लेकर डललेक की सफाई पर करोडो रूपये खर्च किए जा रहे है । लेकिन कश्मीर में जब देश के प्रधानमंत्री का दौरा होता है तो लोग हड़ताल पर होते है , बाज़ार बंद होते हैं , गलियां वीरान पड़ी होती है । प्रधानमंत्री का स्वागत कुछ इस तरह होता है कि अगर हिफाजत में थोडी सी ढील दी जाय तो उत्साही नौजवान प्रधानमंत्री के सामने आकर कश्मीर बनेगा पाकिस्तान का नारा लगा सकता है । आप इसे कामयाबी माने या नाकामयाबी

तू ही नैया पार लगाना

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चिलचिलाती धुप में पसीने से तरबतर राहुल गाँधी ने श्रम दान के जरिये भारत के नौजवानों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले देश के ९० फीसद मजदूरों के बीच शाही परिवार की बढती दूरियों को कम करने की कोशिश की है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारियों के पास इस बार ऐसी कई तस्वीरें होंगी जिसका इस्तेमाल वे आने वाले लोक सभा चुनाव के वक्त कर सकते हैं । भारतीय जनता पार्टी के शाइनिंग इंडिया के चमकदार और भडकदार चुनावी विज्ञापनों को" कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ "जैसे नारों ने धो के रख दिया था । यह अलग बात है कि पिछले चार वर्षों के कांग्रेस के शाशन में सबसे ज्यादा धोखा आम आदमी के साथ ही हुआ है । वाम दलों ने इस बार कांग्रेस से यह नारा छिनकर इसमे थोड़ा संसोधन कर के पेश किया है । "कांग्रेस का हाथ अमेरिका के साथ" । मैडम सोनिया गाँधी के कोटरी के कुछ लीडर मैडम को यह समझाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे है कि परमाणु समझौते ही कांग्रेस की नैया पार कर सकती है । लेकिन दिल है कि मानता नहीं । सोनिया जी को पता है कि जिस तबके को परमाणु सझौते से सीधा लाभ होने वाला है वो कभी वोट करता नहीं , यानि इन मतदादाओ

बाटला हाउस और सेकुलरिस्म

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दरबाजे पर टक टक की आवाज होती है... अन्दर से आवाज आती है ... कौन है ? जी मैं वोदाफोन से आया हूँ। इंट्रो से लगा कि पुण्य प्रसून बाजपयी ने मेरठ वाले वेद प्रकाश शर्मा के किसी उपन्यास के कुछ पन्ने चुरा कर कहानी में ट्विस्ट देने की कोशिश की है । प्रसून जी का माने तो ये पुरा एनकाउंटर एक फ्रौड था । ठीक उसी तरह जब १९ तारीक को जामिया नगर के बतला हाउस में देल्ही पुलिस एल १८ पर दस्तक देने पहुंची तो आस पास के लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि पुलिस किसी मुर्गे की तलाश में है । अचानक गोलियों कि आवाज आने लगी तो लोगों को लगा कि कुछ बेक़सूर लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ज्यादती कर रही है । लेकिन जब लोगों ने इंसपेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को सहारा देते हुए दो पुलिस वाले को बाटला हाउस से निकलते हुए देखा तो कुछ लोग अपना अनुभव इस तरह बाँट रहे थे कि पदक पाने की लालच पुलिस कभी कभी अपने पावं पर भी गोली मार लेती है । और मोहन चंद शर्मा ने कुछ ऐसा ही किया होगा । शाम तक जामिया नगर के आस पास कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि यह आतंकवादियों के ख़िलाफ़ पुलिस कि करवाई थी । लोग इसे फेक एनकाउंटर मान रहे थे । शहीद शर्मा जी कि मौत से कु

इस तस्वीर में शायद कोई आपका नहीं होगा ....

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शनिवार का दिन ऑफिस से आज ६.३० बजे ही निकलने का मौका मिल गया था । मन में ढेर सारे प्रोग्राम थे ,कहीं बाहर तफरी करने का मूड था .... अचानक पटना से प्रशांत का फोन आया ... कहाँ हो ? मैंने कहा कनौट प्लेस पहुँचने वाला हूँ ॥ उसने कहा उधर मत जाना! दो -तीन ब्लास्ट हो गए हैं । मैं तब तक कनौट प्लेस पहुँच चुका था । मन में एक सवाल आया घर चलूं या मौके पर जाऊं ? तब तक घर से भी फोन आ चुका था कहाँ हो ? आप ठीक हो ? यही सवाल मेरे सारे चिर परिचित से आ रहे थे । मेरे साथ खड़े लगभग हर के मोबाइल बज रहे थे और हर से यही सवाल पूछे जा रहे थे । घर परिवार के लोग अपनों के सकुसल जान कर निश्चिंत हो रहे थे । कमोवेश यही निश्चिन्तता सरकार के साथ भी थी । चूँकि ये सीरियल बोम्ब धमाके राजधानी दिल्ली में हुए थे जाहिर तौर पर होम मिनिस्टर से लेकर आला अधिकारीयों को घटना स्थल पर आना जरूरी था , लेकिन मैंने किसी चेहरे पर कोई तनाव या सिकन नहीं देखा ... शायद इसलिए भी कि पाटिल साहब के गृह मंत्री रहते हुए ११ बड़े सिलसिलेवार धमाके हुए है जिसमे अब तक ३००० से ज्यादा लोग मारे गए है .५००० से ज्यादा लोग जख्मी हुए जाहिर है इस हालत में कोई भी

देखो इस कश्मीर को

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कश्मीर में अमूमन दो कैलंडर प्रचलित है अंग्रेजी कैलेंडर और इस्लामी कैलेंडर , लेकिन यह पहली बार की घटना है कि वहां गिलानी साहब का कैलेंडर भी प्रचलित हुआ है । रमजान के दौरान कब और कहाँ नमाज पढ़ना है और कब दुकाने बंद रखनी है , कब प्रदर्शन होना है । सब चीजों के लिए तारीख मुकरर कि गयी है । और उसका अनुपालन भी हो रहा है । लश्करे तोइबा (कुख्यात पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन ) के सरगना हाफिज़ मुहम्मद सईद करांची में कश्मीर कूच करने के लिए रैली करते हैं तो श्रीनगर से गिलानी साहब उस रैली को संबोधन भी करते हैं । यह सब कुछ आजाद हिंदुस्तान मे ही सम्भव है । लेकिन कश्मीर में इनदिनों आज़ादी की चर्चा जोरों पर हैं । जम्मू कश्मीर में चुनाव होने है ,अक्टूबर -नवम्बर में चुनाव हो जाने चाहिए ,लेकिन ऐसा नही हो रहा है । कश्मीर के सियासी लीडर माहौल सुधारने की मांग कर रहे हैं । यानी माहौल को दुरुशत करा कर उनके हाथ कश्मीर की राज सत्ता सौप दी जाय । शायद इसलिए सियासी नेताओं ने राजनितिक पहल बंद कर दी है। हुर्रियत के दूसरे लीडर ओमर फारूक ने सियासी लीडरों के नाम फतवा भी जारी किया है । " जो सियासी जमात चुनाव प्रक्रिया में

कोसी के कहर और सुनामी के प्रलय में इतना फर्क क्यों

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भारत सरकार की ओर से कोसी के प्रलय से प्रभावित ३० लाख लोगों के लिए १००० करोड़ रूपये की मदद दी गई है। पिछले १० दिनों की यह सबसे बड़ी ख़बर है । भारत सरकार के मंत्री (लालू जी , रामविलास पासवान जी ) बाढ़ प्रभावित इलाकों में घूम घूम कर बता रहे हैं कि भारत सरकार दिलखोल कर यहाँ धन वर्षा कर रही है । लोगों को इस बड़ी ख़बर पर यकीन कराने के लिए लालू जी अपने बटुए से पॉँच पाँच सौ के नोट निकाल के यह भी बताते हैं नोट बिल्कुल ऐसा ही होगा । रेलवे मंत्रालय के स्टोल लगे हुए हैं ,स्टील मंत्रालय के स्टोल लगे हुए हैं जहाँ कोई भी जाके रेल मंत्रालय और स्टील मंत्रालय के उपलब्धियों से अवगत हो सकता है । यहाँ आर जे डी के राहत कैम्प लगे हुए है लोजपा के कैम्प लगे हुए है जहाँ एक टाइम के भोजन के साथ चुनाव प्रचार की सामग्री भी मुफ्त बांटी जाती है । भारत के लोगों की जेहन में आज भी सन २००४ के प्रलयंकारी सुनामी की तस्वीर मौजूद होगी । भारत सरकार के डिसास्टर मैनेजमेंट पहली बार अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल तमिलनाडू और आन्ध्र प्रदेश के सुनामी प्रभावित इलाकों में किया था । केन्द्र सरकार की ओर से 15000 करोड रूपये से ज्यादा रिहाबिल

कोशी का प्रलय या लूट खसोट का पर्दाफास

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बिहार का शोक के नाम से मशहुर कोशी ने एक फ़िर अपना तांडव दिखाया है । बड़े शहरों मे रहने वाले बुधिजीबी इसे भारत का केटरीना मानते हैं । शहरों में रहने वाले लोग मानते हैं कि मिसिसिपी के बड़े बाँध मे दरार पड़ने से अमेरिका के कई शहरों मे पानी घुस गया था । ठीक इसी तरह भीमनगर बराज मे दरार पड़ने से कोशी की यह प्रलयंकारी बाढ़ बिहार के कई जिलों में सुनामी का कहर बरपा की है । लेकिन हकीकत कुछ और बयां करती है । यह बाढ़ बिहार की गरीबी की कोख से निकली बेईमानी ,लूट खसोट , भ्रष्टाचार का नतीजा है । कोशी के इस प्रलय को मीडिया ने भारत के हर आम खास के बीच चर्चा में ला दिया है । लेकिन कल्पना कीजिए यही प्रलयंकारी बाढ़ २० वर्ष पहले आती थी तब न तो कोई टीवी चैनल होता था न ही कोई हिलिकोप्टर से दौरा । उस हालत मे लोग इस प्रलय से कैसे मुकाबला करते होंगे ?पिछले सौ वर्षों में कोशी ने बिहार के कई इलाके का सामाजिक ,आर्थिक ,भोगोलिक , राजनितिक तस्वीर बदल दी है । विकास के नाम पर रेलवे कि छोटी लाइन बड़ी लाइन में जरूर तब्दील हो गई लेकिन कोशी का कहर यहाँ जारी रहा । नेपाल से निकलने वाली यह नदी तक़रीबन ६९००० कि मी सफर तय करके गंगा

कश्मीर तेरी जान मेरी जान हिंदुस्तान या पाकिस्तान

भारत ने कहा कश्मीर उसका अटूट अंग है ,पाकिस्तान ने कहा कश्मीर उसकी धड़कन । इसी अटूट अंग और धड़कन को बचाने और हथियाने का जो सिलसिला १९४७ से शुरू हुआ ओ आज भी जारी है। पाकिस्तान की ओर से कभी कश्मीर को हड़पने के लिए कबय्लिओं को भेजा गया कभी पाकिस्तानी फौज ने सीधे आक्रमण करने की कोशिश की , इससे बात नही बनी तो पाकिस्तान ने जेहाद का सहारा लिया और आतंकवाद एक नया सिलसिला शुरू किया । जनरल जिया उल हक ने ब्लीडिंग बाय थोसंड्स कट्स के जरिये भारत को थकाने की एक खतरनाक खेल की शुरुआत की जो आज पुरे भारत में आजमाया जा रहा है । पिछले २० वर्षो में अब तक इस खुनी खेल ने १ लाख से ज्यादा लोगों को लीलहै , लाखों लोग घर से बे घर हुए हैं । इस खतरनाक खेल के शिकार हिंदू हुए हैं तो मुसलमान भी । कश्मीर में शेख अब्दुल्लाह से लेकर गुलाम नबी आजाद तक जितने मुख्यमंत्री हुए उन्होंने भारत सरकार का या कहें कि हिंदुस्तान के लाखों लोगों की कमाई को पानी के तरह बहाया , लेकिन जब जब कश्मीर में हिंदुस्तान की आवाज धीमी पड़ी उन्होंने अपना पीठ ही दिखाया है । संसद में ओमर अब्दुल्लाह ने एतिहासिक भाषण में जोर देकर कहा की ओ मुसलमान है और

जम्मू के लोगों के गुस्से को समझने की जरूरत है

"कांग्रेस पार्टी से हमें बेहद प्यार है लेकिन जम्मू की अस्मिता हमारे लिए उससे से भी महत्वपूर्ण है" जम्मू के मौजूदा एम् पी मदन लाल शर्मा के इस बयान पर गौर फरमाए । कमोवेश आज जम्मू रेजिओन मे हर आदमी की यही सोच है। कांग्रेस हो या बीजेपी या पन्थेर्स पार्टी जम्मू की सियासत में दखल रखने वाली हर जमात आज अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति के साथ खड़ी है। जम्मू जल रहा था और केन्द्र सरकार इसे बीजेपी समर्थित प्रदर्सन मानकर इसे थकाने की कोशिश कर रही थी । याद हो की काश्मीर मे महज एक सप्ताह के विरोध को सरकार पचा नहीं पायी ,नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी सरकार पर दबाव बनाने लगी कि अगर अमरनाथ श्रायण बोर्ड को दी गई जमीन सरकार वापस नहीं लेती तो काश्मीर के तथाकथित जनांदोलन को हुर्रियत के लीडर अपने साथ ले जायेंगे । और घबराई सरकार आनन् फानन मे न केवल लैंड ट्रान्सफर को रद्द किया बल्कि अमर नाथ श्रायण बोर्ड को लगभग भंग करके यात्रा की जिम्मेदारी सरकार अपने हाथ में ले ली । जाहिर है जम्मू काश्मीर को सिर्फ़ काश्मीर समझने वाले लोगों ने एक बार फ़िर वही किया जो पिछले ६० साल से केन्द्र सरकार करती आ रही है । लदाख के लोग

क्या हालिया धमाके गुजरात दंगों का बदला था ?

सन २००४ से अबतक ७० धमाकों का दर्द इस देश ने झेला है , इन धमाकों मे 4000से ज्यादा लोग मारे गए वही 6000से ज्यादा लोग जख्मी हुए । इन में सैकडो आज भी मौजूद हैं जिनके चेहरे पर आतंकवाद के जख्मों के निशान मौजूद है। ये आलग बात है कि हम या तो उन्हें देखना नही चाहते या फ़िर हमने उन्हें भुला दिया है । पिछले वर्षो मे ये धमाके मुंबई ,कोयम्बतूर ,श्रीनगर ,अहमदाबाद ,बंगलुरु ,जयपुर , वाराणसी , ह्य्द्राबाद , मलेगों कह सकते हैं कि देश का शायद ही कोई बड़ा शहर हो जहाँ आतंकवाद के खुनी पंजों के निशान न पड़े हों । हर धमाके के बाद मीडिया से पीछा छुडाने के लिए जाँच एजेन्सी बड़ी बड़ी खुलासा करती है और महीने भर में मामला रफा दफा हो जाता है । पिछले वर्षों के इन धमाके मे आज तक न ही कोई शातिर अपराधी को सामने लाया गया न ही किसी को इस साजिस में शामिल होने के कारन कोई सजा मिली । आजाद हिंदुस्तान में अपराधी , आतंकवादी सरहद के आर पार बेरोकटोक घूमते रहे । आजद हिंदुस्तान में आतंकवादियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि एक महीने पहले जयपुर मे सीरियल बम धमाके होते है जिसमें ६३ लोग मारे जाते हैं , अभी इसकी पड़ताल चल ही रही होती है कि ब

खबरिया चैनलों के धमाके

जयपुर के बाद एक बार फ़िर बंगलूर । एक साथ आठ धमाके -- । राजस्थान पुलिश अभी भी धमाके की साजिशों को खंगालने में लगी है । लेकिन अब खबरिया चैनलों के लिए ये ख़बर बासी हो गई है। अचानक बंगलोर के धमाके ने चैनलों की सरगर्मी बढ़ा दी । रक्षा विशेषज्ञों से लेकर आतंकवाद पर नजर रखने वाले पत्रकार तीर कमान के साथ मोर्चे पर डट गए । धमाके के १० मिनट के बाद ही अलग अलग चैनलों से खुलासा होने लगा था की इसमे सिमी का हाथ है , कोई पुख्ता सबूत के तौर पर हुजी का नाम ले रहे थे , किसी ने धमाके की प्रकृति के आधार पर लश्कर और सिमी का हाथ बता रहे थे । लेकिन इस बीच ख़बर ये भी आई की धमाके में सिर्फ़ दो लोगों की मौत हुई है । लो इंटेंसिटी के इस धमाके के रहस्य जानने की तत्परता को हमने कुछ इस तरह समझा । हमारे न्यूज़ डेस्क पर भी थोडी देर तक ख़बर जानने के लिए काफी उत्सुकता थी लेकिन जब उन्हें बताया गया की धमाके में सिर्फ़ एक शहीद हुए हैं उनकी तीब्रता कम हो गई । उनका सवाल था कितने मरे ? ब्यूरो से जवाब आया अभी तक एक के मरने की पुष्टि हुई है । जवाब मिला रहने दीजिये कुछ शॉट्स बना लीजिये । धमाके को समझने का ये अपना अपना दृ

सरकार-सरकार के खेल में कौन जीतेगा ?

अपने पप्पू यादव जेल से बाहर निकल कर खुली हवा में सांस लेंगे। शाहबुद्दीन और अतीक अहमद को लोकतंत्र की रक्षा के लिए रिहा किया गया है। शिबू शोरेन को कोयला मंत्रालय सौपने के साथ साथ उनके एक बेटे के हाथ झारखण्ड सौपने की तैयारी की जा रही है । अजित सिंह को लखनव एयर पोर्ट सोपने का वचन दिया गया है। देवेगौडा साहब बर्तमान नहीं भविष्य सुनिश्चित की गारंटी चाहते है। कही २५ करोड़ तो कही ३० करोड़ करोड़ का खुला ऑफर दिया जा रहा है ।यह अलग बात है कि १९९३ में सरकार बचाने की सूरत में महज ५० लाख की दर से सौदा तय करना पडा था । मनमोहन सिंह सरकार में, रेट महगाई के कारण २५ करोड़ रूपये हो गयी है। इस तरह सरकार -सरकार के इस खेल में हर छोटी बडी पार्टियों के वारे न्यारे हैं। मजेदार बात तो यह है कि इस खेल में कोई रेफरी नहीं है हर कोई खिलाडी है । रेफरी की भूमिका में बने रहने की जीद के कारण लोक सभा अद्यक्ष खुद असमंजस में नजर आते हैं । यानि जरुरत पड़ी तो वे रेफरी कि भूमिका से बाहर निकल कर मैदान में भी उतर सकते हैं । सत्ता के इस खेल में पुराने दुश्मन दोस्त बन गए हैं । और जनम जनम का साथ निभाने का वादा करने वाले लोग

अमर सिंह एंड कंपनी

कहते हैं कि हर की जिन्दगी में एक दिन खास होता है लेकिन कुछ लोग खास होते हैं जिनका हर दिन खास होता है । इन लोगों का एक खास तजुर्बा यह है कि हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा । अपने अमर सिंह ऐसे लोगों में ही शुमार किए जाते हैं । इन दिनों अमर सिंह जी मनमोहन सिंह सरकार के संकट मोचन की भूमिका में हैं। सरकार बचाने में जितनी सरदर्दी कांग्रेस के लीडर नही ले रहे उससे ज्यादा अपने अमर सिंह ले रहे हैं। अगर आपने कारन पूछ दिया तो ये एक ऐसा यक्ष प्रश्न है ,जिसका उत्तर मेरे पास नहीं हैं । मुलायम सिंह के साथ अमर सिंह कब जुड़े यह बात भले ही इतिहास में दर्ज न हो लेकिन मुलायम सिंह के ठेठ समाजवाद और अखाडे कि राजनीती को अमर सिंह ने कैसे कारपोरेट घराने और बॉलीवुड की चकाचौंध में फसाया यह बात इतिहास में जरूर दर्ज होगी । लोहिया के लोग यानि बाबू बेनी प्रसाद , जनेश्वर मिश्रा और राज बब्बर जैसे लोग कैसे हासिये पर चले गए और अमर सिंह फिल्मी सितारों के लिए समाजवादी पार्टी को एक प्रयोगशाला बना दिया । बिंदास सियासत के लिए मशहूर अमर सिंह समाजवादी पार्टी की पहचान बन गए । सत्ता में जोड़ तोड़ का खेल भारतीय राजनीती में जब

जीत कर भी क्यों हारते हें कश्मीर में

गुन्नार मिर्डल ने लिखा था कि इंडिया एक सॉफ्ट स्टेट है । कसौटी पर परखें तो आपको जरूर लगेगा कि भारत शक्ति ,वैभव, ज्ञान के मामले में भले ही अपनी पहचान बनाए हो लेकिन स्टेट के रूप में उसे हमेशा उसे एक लचर , ज्यादा विवेकशील , कुछ ज्यादा ही धैर्यवान शाशक से पाला पड़ा है। १९४७ से लेकर आजतक कश्मीर के मामले में हुक्मुतों के फैसले ने इस मुद्दे को सुलझाने के वजाय उलझाया ही है। जम्मू कश्मीर में मौजूदा सूरते हाल के लिए हुकूमत की अदूरदर्शिता ने ही छोटे से विवाद को तील का तार बना दिया है । अमरनाथ श्राइन बोर्ड को ४० एकड़ जमीन दिए जाने के मामले को जिस तरीके से प्रचारित किया गया इसमें हुकूमत कि नाकामयाबी ही सामने आती है। पुरे मामले को लेकर श्रायण बोर्ड लडाई लड़ रही थी और राज्य कि सरकार चुप चाप तमाशा देख रही थी । पिछले साल कश्मीर में यह प्रचारित किया गया कि यात्रियों कि भारी भीड़ के कारण वातावरण प्रदूषित हो रहे हैं । प्रदुषण का तर्क देने वाले वही लोग थे जिन्होंने ७० किलो मीटर में फैले दल लेक को २ किलो मीटर में तब्दील कर दिया था । यात्रा के विरोध में उतरने वाले लोगों ने हिंदू पोलुशन , muslim पोलुशन के र